बिहार की लोक कलाओं में से एक मिथिला पेंटिंग दुनिया भर में प्रसिद्ध है। मान्यता है कि ये कला त्रेता युग के समय भी मौजूद थी। श्री राम और मैथिली जिन्हें हम सीता के नाम से भी जानते हैं, उनके विवाहोत्सव में भी पूरे मिथिला राज्य को इस चित्रकारी से सजाया गया था। आज भी इस कला को ज़िंदा रखने और आगे बढ़ाने के महायज्ञ में कई कलाकार जुटे हुए हैं। उनमें से एक हैं दरभंगा की रहने वाली पुतुल चौधरी। आज इंडिया स्टोरी प्रोजेक्ट में कहानी पुतुल की।
मिथिला की विरासत को सहेजने का संकल्प
बिहार के दरभंगा ज़िले का ‘सृजन मिथिला’ एक ऐसी शुरुआत है, एक ऐसा संकल्प है जो मिथिला की विरासत, उसकी संस्कृति और उसकी लोककला को ना सिर्फ़ सहेज और संवार रहा है बल्कि उसे एक नया आयाम भी दे रहा है। मिथिला चित्रकारी की कलाकार पुतुल चौधरी ने अपने पति राजेश चौधरी के साथ मिलकर इस संस्था की शुरुआत की। अपनी संस्था के ज़रिये पुतुल नई पीढ़ी को इस प्राचीन मिथिला पेंटिंग से जोड़ रही हैं। साल 2016 से इस संस्था के तहत उन्होंने 200 से ज़्यादा महिलाओं और बच्चियों को मिथिला पेंटिंग सिखाई है। ख़ास बात ये है कि पुतुल इसके लिए कोई शुल्क नहीं लेती। वो समय-समय पर मिथिला पेंटिंग की वर्कशॉप लगाती हैं जिसमें कोई भी आकर पुतुल से मिथिला पेंटिंग बनाना सीख सकता है।
यूं तो इस संस्था का गठन साल 2016 में किया गया लेकिन पुतुल कई साल पहले से ही अपने इस मिशन में जुटी हुई थीं। वो मूलरूप से बिहार के मधुबनी की रहने वाली हैं। बचपन से ही पुतुल मिथिला पेंटिंग से जुड़ी रहीं। उनकी दादी मिथिला पेंटिंग किया करती थीं। दादी को देख-देख कर पुतुल भी धीरे-धीरे इसमें हाथ आजमाने लगीं। अपनी पोती को चित्रकारी करते देख दादी ने ना केवल उत्साह बढ़ाया बल्कि सिखाया भी। जैसे-जैसे पुतुल बड़ी हुईं, मिथिला पेंटिंग पर उनके हाथ सधते चले गए।
संस्कृत में आचार्य तक की पढ़ाई करने वाली पुतुल का मिथिला पेटिंग से नाता शादी के बाद भी नहीं टूटा। जब भी मौक़ा मिलता वो घर में भी मिथिला पेंटिंग की कलाकृतियां बनाती रहीं। पुतुल की इस प्रतिभा को ससुराल में भी ख़ूब सम्मान मिला। उनके पति राजेश चौधरी ने भी पुतुल को ख़ूब बढ़ावा दिया।
कला को बाज़ार से जोड़ा
पुतुल का मक़सद अपनी इस लोक कला को ना केवल ज़िंदा रखना है बल्कि उससे जुड़े कलाकारों को बेहतर रोज़गार और आमदनी के अवसर प्रदान करना भी है। इसी वजह से उन्होंने मिथिला पेंटिंग को नवाचार से जोड़ दिया। उन्होंने साड़ियों, कुर्तियों, धोती, कुर्ते जैसे परिधानों पर मिथिला पेंटिंग की। बाज़ार में इसका अच्छा रिस्पॉन्स मिला। लोगों को मिथिला पेंटिंग से सजे कपड़े ख़ूब पसंद आए। कैनवस के साथ-साथ कपड़ों पर की गई कलाकारी को ऑनलाइन शॉपिंग वेबसाइट ने भी हाथों-हाथ उठाया। इससे उत्साहित पुतुल ने इस कला को और आगे बढ़ा दिया। अब वो मिथिला पेंटिंग की कई सजावटी चीज़ें भी बना रही हैं। यहां तक कि घरों में लगने वाले बिजले के पंखों को भी मिथिला चित्रकारी से एक नया रंग-रूप दे रही हैं। ‘सृजन मिथिला’ के बैनर तले वो मिथिला पेंटिंग से सजी इन कलाकृतियों के स्टॉल्स अलग-अलग प्रदर्शनियों में लगाती हैं।
कला ही नहीं कलाकार को भी सम्मान
पुतुल चौधरी मिथिला पेंटिंग को बढ़ावा देने में जुटी हुई हैं। नए कलाकार तैयार कर रही हैं लेकिन इसके साथ-साथ वो इस महान कला के मौजूदा कलाकारों का भी सम्मान कर रही हैं। मिथिला चित्रकारी की मशहूर कलाकार पद्मश्री दुलारी देवी के सम्मान में उन्होंने दरभंगा में बहुत बड़े कार्यक्रम का आयोजन किया। वो जानती हैं कि इन कलाकारों की वजह से ही मिथिला पेंटिंग हज़ारों साल बाद भी ज़िंदा है।
पुतुल को भी इस कला साधना के लिए कई सम्मानों से नवाज़ा गया है। मिथिला विभूति, वूमन इंटरप्रेन्योर ऑफ़ द ईयर, गोल्डन बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स और रोटरी क्लब जैसी प्रतिष्ठित संस्थानों ने पुतुल को सम्मानित किया है। आज पुतुल ना केवल मिथिला पेंटिंग की जानी-मानी कलाकार के तौर पर स्थापित हो चुकी हैं बल्कि इस कला को बाज़ार से जोड़ कर कला और कारोबार का नया मंच भी तैयार कर चुकी हैं। इंडिया स्टोरी प्रोजेक्ट पुतुल की कला साधना को सलाम करता है और उन्हें भविष्य के लिए शुभकामनाएं देता है। उम्मीद है कि पुतुल मिथिला की इस विरासत को नए आकाश पर पहुंचाएंगी।
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