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प्रकृति की ओर बढ़ते क़दम

कभी-कभी चीज़ें आपके सामने होती हैं, आपके पास होती हैं लेकिन आपका उस पर ध्यान नहीं जाता। आप उसकी अहमियत नहीं समझ पाते। लेकिन जब आपको उसके मोल का पता चलता है तो बदलाव की नई कहानी का जन्म होता है। आज इंडिया स्टोरी प्रोजेक्ट भी ऐसे ही बदलाव की कहानी लेकर आया है। ये कहानी है गुजरात के पाटण की रहने वाले तन्वी और हिमांशु की।

एक फ़ैसले ने बदल दी ज़िंदगी

तन्वी बेन पटेल बीएड करने के बाद एक स्कूल में पढ़ा रही थीं। पति हिमांशु पटेल मैकेनिकल इंजीनियर थे और वहीं एक नामी-गिरामी कंपनी में बड़ी पोस्ट पर काम कर रहे थे। दोनों की अच्छी सैलेरी थी। पुश्तैनी ज़मीन पर हो रही खेती से अनाज भी मिल जाता था। कुल मिला कर कहा जाए तो किसी बात की कमी नहीं थी। ज़िंदगी ख़ुशी से बसर हो रही थी। लेकिन पति-पत्नी के अंदर कुछ नया, कुछ अलग करने की चाहत ने उनकी ज़िंदगी को एक नया मोड़ दे दिया।

जैविक खेती की शुरुआत

पाटण में ही हिमांशु और तन्वी की 70 बीघा ज़मीन है। इस ज़मीन पर वो दूसरे किसान से बटाई पर खेती करवा रहे थे। जब ऑर्गेनिक खेती की चर्चा ज़ोर पकड़ रही थी तब तन्वी के मन में भी इस तरह की खेती करने का विचार आया। उन्हें पता चला कि उनकी ज़मीन पर खेती करने वाला किसान रासायनिक खाद और दवाओं का इस्तेमाल करता है। इससे तन्वी को बहुत निराशा हुई। 10 साल से भी ज़्यादा समय से प्राइवेट नौकरी करने वाला ये पटेल दंपति ने एक एक्सिपेरिमेंट का फ़ैसला किया। उन्होंने तय किया कि ज़मीन के एक हिस्से में वो जैविक खेती करेंगे। लेकिन ये फ़ैसला आसान नहीं था। भले ही उनकी पुश्तैनी ज़मीन थी लेकिन दोनों का खेती से सीधा वास्ता कभी नहीं रहा। काफ़ी सोच-विचार कर तन्वी और उनके पति हिमांशु ने अपने फ़ैसले पर मुहर लगा दी। दोनों ने साल 2017 में नौकरी छोड़ दी और नेचुरल फार्मिंग की तैयारियों मे जुट गए। लेकिन नौकरी छोड़ने के फ़ैसले पर तन्वी और हिमांशु के घरवाले नाराज़ हो गए। उन्हें लगा कि अच्छी खासी नौकरी को छोड़ कर ये दोनों क्यों खेती में अपना भविष्य बर्बाद कर रहे हैं। क़रीब एक साल तक ऐसे ही हालात बने रहे लेकिन दोनों के मजबूत इरादों और जज़्बे के आगे उनकी नाराज़गी ख़त्म हो गई।


मुश्किलों से मिला नया रास्ता

तन्वी और हिमांशु ने नौकरी छोड़ दी। साल 2019 में अपनी 70 बीघे की ज़मीन में से 2 बीघे में उन्होंने जैविक खेती शुरू की। फसल तो वही थी बस दोनों ने खेती का तरीका बदल दिया। रासायनिक खाद और दवाओं का इस्तेमाल पूरी तरह से बंद कर दिया। ज़मीन की उर्वरा बढ़ाने के लिए गोबर की खाद और वर्मी कंपोस्ट का इस्तेमाल किया जाने लगा। उनकी मेहनत रंग लाई। फसल अच्छी हुई तो हौसला बढ़ा लेकिन एक नई मुसीबत से उनका सामना हुआ। ये मुसीबत थी फसल में लगने वाले कीड़ों की। तमाम कोशिशों के बाद भी कीड़े फसल ख़राब कर रहे थे। प्राकृतिक दवाओं का उन पर असर नहीं हो रहा था। लहलहाती फसल को कीड़ों का खाना बनता देख तन्वी और हिमांशु परेशान रहने लगे। वो लगातार इसका उपाय खोजने में लगे रहे। दोनों को उपाय मिला और ऐसा मिला कि जैविक खेती की इस कोशिश में एक नया अध्याय बन गया।

मधुमक्खी पालन की शुरुआत

कीड़ों से छुटकारा पाने की कोशिश उन्हें एक दूसरे कीड़े तक ही ले गई। किसी ने बताया कि अगर मधुमक्खियों का पालन किया जाए तो फसल कीड़ों से मुक्ति मिल सकती है। फ़िर क्या था। तन्वी ने मधुमक्खी पालन के बारे में जानकारी जुटानी शुरू कर दी। उन्हें महसूस हुआ कि सिर्फ़ जानकारी से काम नहीं चलेगा। उन्हें इसके लिए पूरी ट्रेनिंग की ज़रूरत है। इसके बाद उन्होंने अहमदाबाद के खादी एंड विलेज इंडस्ट्रीज कमीशन से ट्रेनिंग ली। ट्रेनिंग पूरी होने के उन्होंने दो बॉक्स के साथ मधुमक्खी पालन शुरू कर दिया। नतीजे सुखद रहे तो उन्होंने क़रीब 4 लाख रुपये खर्च कर सौ बॉक्स और ख़रीद लिये। इससे दो फ़ायदे हुए। एक तो उनकी फसल को कीड़ों से राहत मिलने लगी और दूसरा मधुमक्खी से मिलने वाले शहद से उनकी आमदनी बढ़ गई। धीरे-धीरे उन्होंने मधुमक्खी के बॉक्स की संख्या 500 कर ली।

मुनाफ़ा हुआ, रोज़गार दिया

नेचुरल फार्मिंग से उगने वाली सब्ज़ियां और फसल अच्छे दाम में बिक रहे हैं। फ़िलहाल बी फार्मिंग से उन्हें 9 टन शहद मिल रहा है जिससे उन्हें अच्छी कमाई भी हो रही है। तन्वी और हिमांशु ने अपने प्रोडक्ट्स को बेचने के लिए स्वाद्य नाम का ब्रांड बनाया है। वो शहद को स्थानीय स्तर पर घर-घर बेच रही हैं। इसके साथ ही ऑर्डर मिलने पर वो शहद को कोरियर से भी भेजती हैं। प्राकृतिक खेती और मधुमक्खी पालन में उन्होंने 7 परिवारों को रोज़गार दिया है।

केमिकल से बचाव ज़रूरी

तन्वी बताती हैं कि ना मधुमक्खी पालन के लिए उन्हें केमिकल से बचाना बेहद ज़रूरी है। मधुमक्खी बहुत ही संवेदनशील और कोमल जीव होते हैं। ज़रा सा भी पेस्टिसाइड सैकड़ों मधुमक्खियों की जान ले सकता है। एक बार पास के खेतों में दवा के छिड़काव ने उनकी हज़ारों मधुमक्खियों की जान ले ली थी। उन्हें लाखों का नुकसान भी उठाना पड़ा था। तन्वी बताती हैं कि फ़िलहाल वो केवल 2 बीघे में ही प्राकृतिक खेती कर रहे हैं लेकिन हर साल इसमें बढ़ोतरी करने का विचार है। धीरे-धीरे वो अपनी पूरी 70 बीघे की ज़मीन पर नेचुरल फार्मिंग करने लगेंगे। वो कहती हैं कि मधुमक्खियों के साथ-साथ इंसानों को भी केमिकल से बचना चाहिए। इससे कई तरह की गंभीर बीमारियों का ख़तरा कम हो जाएगा। आज वो एक डेयरी फॉर्म भी चला रही हैं जहां 25 से ज़्यादा गायें पल रही हैं। इसके साथ-साथ वो प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए आसपास के किसानों को ट्रेनिंग भी देती हैं।

औषधीय पौधों की खेती की ट्रेनिंग

तन्वी थमने वालों में से नहीं है। ऑर्गेनिक फार्मिंग और मधुमक्खी पालन के बाद अब वो औषधीय पौधों की खेती की तैयारी कर रही हैं। इसके लिए भी वो बाक़ायदा ट्रेनिंग ले रही हैं। इन दिनों वो आणंद के भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के औषधीय एवं सगंधीय पादप अनुसंधान निदेशालय में हर्बल प्लांट्स की खेती के तौर-तरीक़े समझ रही हैं। वो आगे चल कर अपनी ज़मीन पर औषधीय पौधों की खेती करने की योजना बना चुकी हैं। वो बताती हैं कि इन मेडिसिनल प्लांट्स को वो गायों के चारे में इस्तेमाल करेंगी जिससे दूध की क्वालिटी बढ़ जाएगी। तन्वी और उनके पति हिमांशु का काम लगातार आगे बढ़ रहा है। वो कई दूसरे किसानों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन चुकी हैं। उनके इस अभियान को इंडिया स्टोरी प्रोजेक्ट की शुभकामनाएं।