खेल का मैदान हो या फ़िर आसमान की ऊंचाई, राजनीति हो या फ़िर खेत-खलिहान। नारी शक्ति का परचम बुलंदी पर लहरा रहा है। हर क्षेत्र में महिलाओं की बढ़ती भागीदारी एक सुखद भविष्य की तस्वीर गढ़ रही है। आज भी इंडिया स्टोरी प्रोजेक्ट एक साहसी महिला की कहानी लेकर आया है जिसने एक ऐसे क्षेत्र में अपनी जगह बनाई है जिसमें पुरुषों का वर्चस्व रहा है। हम बात कर रहे हैं सुरेखा यादव की।
एशिया की पहली लोको पायलट
सुरेखा यादव देश ही नहीं एशिया की पहली महिला हैं जिन्होंने रेल की कमान संभाली है। वो एशिया की पहली महिला लोको पायलट हैं। 2 सितंबर 1965 को महाराष्ट्र के सतारा में जन्मीं सुरेखा की शुरुआती पढ़ाई सतारा के सेंट पॉल कॉन्वेंट में हुई। इसके बाद उन्होंने वोकेशनल ट्रेनिंग कोर्स और इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा किया।
लोको पायलट की मिली नौकरी
इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई सुरेखा के लिए बहुत काम आई। रेल बचपन से ही सुरेखा को बहुत आकर्षित करती थी। कुछ इसी वजह से उन्होंने रेलवे भर्ती का आवेदन फॉर्म भर दिया। ये साल 1986 था जब उन्होंने रेलवे की लिखित परीक्षा पास की थी। इंटरव्यू में भी सुरेखा ने कामयाबी हासिल की। उनकी नियुक्ति सहायक चालक के तौर पर हुई थी। शुरुआत में उन्हें कल्याण ट्रेनिंग स्कूल में प्रशिक्षण दिया गया और प्रशिक्षण पूरा होने के बाद 1989 में वो नियमित सहायक ड्राइवर बन गईं। उन्हें पहले मालगाड़ी चलाने का मौक़ा मिला। क़रीब 11 साल तक उन्होंने मालगाड़ी चलाई। इसके बाद उन्हें प्रमोशन दिया गया। साल 2000 में उन्हें पैसेंजर गाड़ी चलाने का मौक़ा मिला। साल 2011 में उन्हें एक बार फिर प्रमोशन मिला। अब उन्हें मेल/एक्सप्रेस ट्रेन का पायलट बनाया गया। 8 मार्च 2011 को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के मौक़े पर सुरेखा ने पर डेक्कन क्वीन एक्सप्रेस को पुणे से छत्रपति शिवाजी टर्मिनस मुंबई के बीच चलाई थी। पिछले साल महिला दिवस के मौक़े पर सुरेखा यादव के साथ-साथ असिस्टेंट लोको पायलट धनश्री जाधव ने मुंबई छत्रपति शिवाजी टर्मिनस से इगतपुरी तक पुष्पक एक्सप्रेस चलाई। ख़ास बात ये है कि उस ट्रेन में गार्ड भी महिला ही थीं मयूरी कांबले।
वंदे भारत की कमान
हाल ही में महाराष्ट्र के सोलापुर और मुंबई CST के बीच सेमी हाईस्पीड ट्रेन वंदे भारत का परिचालन शुरू किया गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस ट्रेन को हरी झंडी दिखाई थी। 13 मार्च से इस ट्रेन का परिचालन सुरेखा यादव को सौंपा गया है। रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव से लेकर प्रधानमंत्री मोदी तक ने इसे नारी सशक्तिकरण की दिशा में बड़ा क़दम बताया। सुरेखा वंदे भारत ट्रेन चलाने वाली पहली महिला लोको पायलट बन गई हैं।
मुश्किलों को पार कर भरी उड़ान
लोको पायलट की नौकरी बेहद चुनौतीपूर्ण होती है। पहले तो इंजन पुरानी तकनीक के होते थे। इंजन में पायलट के लिए सुविधाएं भी नहीं होती थीं। इसके अलावा हमेशा सतर्क होकर ट्रेन चलाना पड़ता है। सुरेखा यादव ने ये साबित कर दिया कि मुश्किल और चुनौतियां भले कितनी भी हों महिला हर काम को अच्छे तरीक़े से अंजाम दे सकती हैं। घर से लेकर बाहर के बड़े से बड़े काम को ज़िम्मेदारी से पूरा कर सकती हैं। सुरेखा जैसे महिलाएं देश की उन तमाम बच्चियों, युवतियों और महिलाओं में आगे बढ़ने का हौसला भरती हैं जो कुछ बनने, आगे बढ़ने का सपना देखती हैं।
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