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बंदे में है दम

हाशिये के बच्चों के जीवन में शिक्षा का गुंजन

कभी-कभी कोई छोटी सी घटना हमारी ज़िंदगी को ऐसा मोड़ दे देती हैं जो ना केवल हमारे जीवन में बदलाव का कारण बन जाती है बल्कि उस बदलाव से सैकड़ों-हज़ारों की ज़िंदगी भी बदल जाती है। आज इंडिया स्टोरी प्रोजेक्ट एक ऐसी शख़्सियत की कहानी लेकर आया है जिसने इस बदलाव को अपने जीवन का मिशन बना लिया।

सुषमा सिंघवी का जीवन मिशऩ

गुंजन फाउंडेशन एक ऐसी संस्था है जो समाज के ग़रीब, पिछड़े और वंचित बच्चों को उनका हक़ दिलाने के लिए पिछले 22 सालों से आंदोलनरत है। वो बच्चे जो ग़रीबी में पैदा हुए, अपने मां-बाप के साथ एक वक़्त की रोटी के लिए भी संघर्ष करते, वैसे बच्चों को उनका आसमान दिलाने के लिए सुषमा ने एक अभियान की शुरुआत की थी जो आज आकार ले चुका है।
इस अभियान का बीज सुषमा के दिल-ओ-दिमाग में उनके बचपन में ही पड़ गया था। वो उस समय अपने हमउम्र बच्चों को तंगहाली और बदहाली में देखकर बेचैन हो जाती थीं। उन्हें लगता था कि उन बच्चों को भी वो सुविधाएं मिलनी चाहिए जो उन्हें मिल रही है। सिर्फ़ इसलिए कि वो ग़रीब परिवार में पैदा हुए, उन्हें सहूलियतों से महरूम रखा जाए, ये सुषमा के स्वीकार करने वाली बात नहीं थी।

गुंजन की गूंज और स्वप्न सार्थक

सुषमा कलकत्ता से दिल्ली आ गईं और अपने अंदर उन बच्चों के लिए कुछ करने का सपना भी साथ लाईं। यहां उन्होंने अलग-अलग क्षेत्रों में काम किया। दूरदर्शन, आकाशवाणी के लिए प्रोग्राम बनाए। इस बीच वो अक्सर बच्चों के लिए कुछ ना कुछ करने की कोशिश में जुटी रहती। उनके काम को एक नाम मिला साल 2004 में जब सुषमा ने गुंजन फाउंडेशन की नींव रखी। इसके ज़रिये वो वंचित समाज के बच्चों के उत्थान के लिए काम करने लगीं। अलग-अलग कार्यक्रमों के ज़रिये वो बदलाव की कोशिशों में जुट गईं। जागरूकता कार्यक्रमों, बच्चों के परिवारों से बातचीत और उन्हें शिक्षा से जोड़ने की पहल ने सकारात्मक असर दिखाना शुरू किया। इन बच्चों के प्रति लोगों के मन से दुराग्रह दूर करने के लिए भी उन्होंने कई अभियान चलाए। पैसों और संसाधनों की कमी से जूझते हुए वो अपने काम को आगे बढ़ाती गईं। साल 2010 में उन्होंने ऐसे ही वंचित बच्चों के लिए एक स्कूल खोल लिया। एक बड़ी कंस्ट्रक्शन कंपनी की मदद से मिली एक इमारत में उस स्कूल की शुरुआत हुई। नाम रखा गया स्वप्न सार्थक। शुरू में स्कूल में केवल 60 बच्चे थे जो अब क़रीब 300 तक हो चुके हैं।


इस स्कूल में बच्चों को ना केवल अच्छी शिक्षा दी जा रही है बल्कि उनकी सामाजिक भागीदारी बढ़ाने, उन्हें आत्मनिर्भर बनाने का भी कौशल विकसित किया जा रहा है। इसी सिलसिले को आगे बढ़ाते हुए उनकी संस्था ने साल 2012 में एक कौशल प्रशिक्षण स्कूल की भी शुरुआत कर दी। यहां ग़रीब युवतियों और महिलाओं को कौशल विकास की ट्रेनिंग दी जाती है ताकि वो स्वरोज़गार कर सकें।

समाज और देश के लिए हमेशा तैयार

सुषमा दूसरे सामाजिक कार्यों में भी हमेशा आगे रहती हैं। अस्पतालों में ज़रूरी उपकरणों का दान हो, कोरोना काल में दवाएं हों या फ़िर पर्यावरण संरक्षण के लिए जागरूकता अभियान। सुषमा की कोशिशें हमेशा चलती रहती हैं।