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धरती से

स्वस्थ होगी तभी धरा, जब जंगल होगा हरा-भरा

गंगा, यमुना और गुप्त सरस्वती का संगम प्रयागराज पौराणिक, ऐतिहासिक और धार्मिक दृष्टिकोण से बहुत महत्वपूर्ण है। लेकिन अब यहां की धरती एक ऐसे अभियान की साक्षी भी बन रही है जल, जंगल और ज़मीन के लिए किसी क्रांति से कम नहीं होगी। प्रयागराज में पर्यावरण संरक्षण को लेकर एक ऐसे काम की शुरुआत की गई है जो ना केवल इलाक़े की आब-ओ-हवा बदल देगा बल्कि इस क्षेत्र में किये जा रहे प्रयासों को एक नई दिशा भी प्रदान करेगा। इस अभियान का नाम है जन-अरण्य। आज इंडिया स्टोरी प्रोजेक्ट में कहानी इसी जन अरण्य अभियान की और इसी से जुड़ी कहानी इस जन अरण्य अभियान को चलाने वाले ग्रीन इंडिया फाउंडेशन की।

जन-अरण्य की ज़रूरत क्यों

जब हम जन-अरण्य की बात कर रहे हैं तो ये बात भी बेहद ज़रूरी है कि आख़िर इस जन-अरण्य की ज़रूरत क्यों पड़ी। हम अक्सर पर्यावरण संरक्षण और पेड़ों को बचाने की बातें करते और सुनते हैं लेकिन अब बातें करने का समय बीत चुका है। अब ज़रूरत है बहुत तेज़ी से क़दम उठाने की। हालात की भयावहता का अंदाज़ा हम क़रीब डेढ़ साल पहले आई एक रिपोर्ट से लगा सकते हैं जिसमें इस बात पर सर्वे किया गया कि दुनिया भर में प्रति व्यक्ति पर कितने पेड़ हैं। आप जान कर हैरान हो जाएंगे कि दुनिया में तो प्रति व्यक्ति 422 पेड़ हैं लेकिन भारत में ये केवल 28 है। उत्तर भारत की स्थिति तो और ख़राब है। भारत का ग्रीन कवर केवल 24 फ़ीसदी है जो गंगा क्षेत्र में केवल 16 से 17 फ़ीसदी। गंगा-यमुना के बसाहट वाले क्षेत्रों में तो ये केवल 2 प्रतिशत रह गया है। यही वजह है जन-अरण्य की।

संगम नगरी में जन-अरण्य

जन यानी लोग और अरण्य यानी जंगल। ऐसा जंगल जो लोगों का बनाया हो, लोगों के लिए हो। इसी संकल्पना को साकार करने के लिए प्रयागराज में एक बड़ी शुरुआत की गई है। इसके तहत ज़िले की 6 जगहों पर छोटे-छोटे जंगल उगाने का काम किया जा रहा है। इसे हम मिनी फॉरेस्ट भी कह सकते हैं। जन-अरण्य की ख़ास बात ये है कि ये आम पौधारोपण अभियान से बिल्कुल अलग है। इसे पूरी तरह से जंगल की तौर पर विकसित किया जा रहा है। आम तौर पर पौधारोपण अभियान में एक या दो किस्म के पौधों को ही लगाया जाता है। इससे पेड़-पौधों में विविधता नहीं आ पाती है लेकिन जन-अरण्य की सोच बिल्कुल अलग है।

स्थानीय प्रजाति के पौधों का रोपण

सबसे बड़ी बात ये है कि इसके तहत रोपे जा रहे किसी भी पौधे की प्रजाति बाहरी नहीं है यानी यहां केवल उन्हीं पौधों को लगाया जा रहा है जो सौ फ़ीसदी स्थानीय हैं। इसके पीछे की सोच ये है कि ये पौधे यहां की मिट्टी, हवा-पानी और दूसरे पौधों के साथ अपना सामंजस्य आसानी से बिठा लेंगे। यही बात दूसरे पौधों के साथ भी लागू होती है। वहीं यहां रहने वाले पक्षियों, कीट-पतंगों के लिए भी स्थानीय पौधे बेहतर आवास और भोजन दे सकेंगे।

सघन वन की कल्पना

जन-अरण्य की दूसरी ख़ास बात है इसे पूरी तरह जंगल की तौर पर विकसित करना। इसकी सोच ये है कि भले ही जंगल का दायरा छोटा हो लेकिन जंगल बेहद सघन हो। इसके लिए प्रति वर्ग मीटर 3 पौधे लगाए जा रहे हैं। जंगल बनाने के लिए इसमें अलग-अलग आकार, प्रकृति के पौधों को शामिल किया गया है। कुछ ऐसे पौधे हैं जो लंबे होते हैं यानी विकसित होने पर वो ऊंचे हो जाएंगे तो कई ऐसे हैं जिनका फैलाव ज़्यादा होगा। इसमें झाड़ियां, घास, लताएं भी लगाई जा रही हैं। 3 साल बाद जब ये जंगल आकार लेने लगेगा तो इसके बीच से निकल पाना भी मुश्किल होगा।

जंगल को ख़ुद आकार लेने का मौक़ा

जन-अरण्य की तीसरी ख़ास बात ये है कि इसमें जंगल तो उगाया जा रहा है लेकिन उसे वो सारे माहौल देने की कोशिश की जा रही है जिससे जंगल ख़ुद आकार ले सके। जंगल में पेड़-पौधों से गिरने वाली पत्तियां, डालें, फूल-फल सब वहीं ज़मीन पर ही पड़े रहते हैं। सड़ते हैं, गलते हैं और फ़िर मिट्टी में मिल जाते हैं। वही पत्तियां खाद बन जाती हैं, वही फल अपने बीज से फ़िर पेड़ बनते हैं और प्रकृति की ये प्रक्रिया सतत चलती रहती है। जन-अरण्य में भी कुछ ऐसी ही कोशिश की जा रही है। पौधे लगाने के साथ-साथ वहां भूसे, पुआल, नारियल के छिलके डाले जा रहे हैं। ये भी तय किया गया है कि जंगल में कभी साफ़-सफाई नहीं की जाएगी। ना तो गिरे पत्तों को हटाया जाएगा, ना डालियों की कांट-छांट होगी।

प्रयागराज के 6 स्थानों पर जन-अरण्य

ऐसा नहीं है कि ये जंगल प्रयागराज में सिर्फ़ एक ही जगह तैयार किया जा रहा है। ग्रीन इंडिया फाउंडेशन ज़िला प्रशासन के साथ मिल कर ज़िले के 6 स्थानों पर ये काम कर रहा है। इन 6 जगहों में कुछ वैसी जगहें हैं जहां पौधे लगाना, सिंचाई और उनकी देखरेख करना आसान है लेकिन कुछ ऐसी भी जगह है जहां जंगल उगाना तो दूर, पौधे लगाना तक मुश्किल था। लेकिन हर मुश्किल, हर चुनौती को पार कर जन-अरण्य को साकार करने की कोशिश जारी है। इन 6 जगहों में मिली क़रीब 25 हेक्टेयर ज़मीन में 2 लाख से भी ज़्यादा पौधे लगाए जा रहे हैं।

फ़िर हरा-भरा होगा गढ़ा कटरा

प्रयागराज का एक इलाक़ा है गढ़ा कटरा। पहले यहां घना जंगल हुआ करता था। फ़िर सिलिका सैंड की खोज हुई और खदान बना दी गई। दशकों तक यहां से सिलिका सैंड निकाली गई और इसके लिए पूरे जंगल की बलि ले ली गई। माइनिंग तो अब बंद हो चुकी है लेकिन ये पूरा इलाक़ा जो कभी जंगल था, बंजर हो गया। ये इलाक़ा बहुत बड़ा है। इसके भी 4 हेक्टेयर में जन-अरण्य लगाया जा रहा है। उस जंगल को पुनर्जीवित करने की कोशिश की जा रही है जो खनन की वजह से ख़त्म हो गया था। उम्मीद है कि अगले 3 सालों में यहां भी स्थानीय पेड़-पौधों का एक घना जंगल तैयार हो जाएगा। अगर 4 हेक्टेयर भूमि पर जंगल खड़ा हो जाएगा तो बाक़ी ज़मीन को भी इसमें शामिल करने पर विचार किया जा सकता है।

कैसे तैयार हो रहा है जन-अरण्य

ग्रीन इंडिया फाउंडेशन ने जन-अरण्य के लिए बहुत से वैज्ञानिक परीक्षण किये हैं। स्थानीय पेड़-पौधों की प्रजातियों की खोज, उनके इतिहास की तलाश से लेकर मिट्टी-पानी की जांच तक पर बहुत काम किया गया है। ग्रीन इंडिया फाउंडेशन से जुड़े विजय शुक्ल बताते हैं कि केवल पौधे लगा देने से काम ख़त्म नहीं होता। पौधे लगाने के साथ काम शुरू होता है। किसी भी पौधे को 3 साल तक देखरेख की ज़रूरत होती है। उसके बाद ही पौधा ख़ुद की देखभाल कर सकता है। जन-अरण्य में भी यही कोशिश की जा रही है। पौधारोपण से पहले वैज्ञानिक तरीक़े से मिट्टी की जांच की जाती है। उसकी उर्वरता का पता लगाया जाता है। जांच के आधार पर प्राकृतिक खाद और अगर ज़रूरत पड़ी तो रासायनिक उर्वरक का इस्तेमाल किया जाता है। पौधे लगाने के बाद उसकी सिंचाई और सुरक्षा के लिए चाहरदिवारी या तारों से घेराबंदी की जाती है। इसमें पूरी तरह से स्थानीय लोगों की भागीदारी भी सुनिश्चित की गई है। स्थानीय स्तर पर ही मज़दूरों को इसमें शामिल किया गया है ताकि वो इससे जुड़ाव महसूस कर सकें।

एक-एक पौधे पर रखी जाएगी नज़र

सुनने में तो ये बड़ा असंभव सा लग रहा है लेकिन ग्रीन इंडिया फाउंडेशन की सोच और तैयारी कुछ ऐसी ही है। अक्सर ये देखने में आता है कि पौधारोपण अभियान के नाम पर लाखों पौधे लगा दिये जाते हैं लेकिन उनमें बचते नाम मात्र के ही हैं। ग्रीन इंडिया फाउंडेशन अपने जन-अरण्य को केवल काग़ज़ों में नहीं तैयार कर रहा है। इसलिए वो अपने लगाए हर पौधे की निगरानी के लिए पर्याप्त व्यवस्था कर रहा है। सभी 6 जन-अरण्य में देखरेख के लिए एक-एक शख़्स नियुक्त किया गया है। वो शख़्स पौधों की देखरेख और सिंचाई के इंतज़ाम देखेगा। अगले एक साल तक, हर तीन महीने में एक-एक पौधे का वैज्ञानिक सर्वे किया जाएगा। पौधों का कैसा विकास हो रहा है, क्या कमी महसूस की जा रही है, क्या बदलाव किये जा सकते हैं, ये सब उस सर्वे का हिस्सा होगा। इसके साथ ही जो पौधे मर गए उनके बदले दूसरे पौधे लगाए जाएंगे। एक साल के बाद अगले दो सालों तक ये सर्वे 6-6 महीने में किया जाएगा। तीन साल में ये जंगल आकार लेने लगेगा।

जन-अरण्य को मिला प्रशासन का सहयोग

ग्रीन इंडिया फाउंडेशन के इस जन-अरण्य अभियान को स्थानीय प्रशासन का भरपूर सहयोग मिल रहा है। ज़िले के तमाम बड़े अधिकारियों ने इस प्रोजेक्ट को ना केवल सराहा बल्कि उसे आगे बढ़ाने में हर मुमकिन मदद की। ज़िला विकास अधिकारी, कमिश्नर, मनरेगा और वन विभाग के अधिकारियों से लेकर कई विभागों के कर्मचारियों का साथ मिल रहा है। ज़मीन आवंटन, पौधों की उपलब्धता और अब सिंचाई की व्यवस्था तक में प्रशासन के अलग-अलग विभाग मदद कर रहे हैं।

13 साल से काम कर रहा है ग्रीन इंडिया फाउंडेशन

प्रयागराज में जन-अरण्य तैयार कर रहा ग्रीन इंडिया फाउंडेशन पिछले 13 साल से पर्यावरण संरक्षण के लिए काम कर रहा है। शुरुआत में केवल 4 लोगों से मिलकर शुरू हुई ये संस्था आज ठीक उसी तरह आकार ले रही है जैसे जन-अरण्य आने वाले दिनों में लेगा। दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश समेत कई राज्यों में ग्रीन इंडिया फाउंडेशन काम कर रहा है।

गंगा वृक्षमाल योजना के तहत इस संस्था ने भूतपूर्व सैनिकों के साथ गंगा के दोनों किनारों की परिक्रमा की। इस परिक्रमा के साथ-साथ गंगा पथ पर क़रीब 30 हज़ार पौधे लगाए गए। ख़ास बात ये है कि इसके लिए स्थानीय लोगों को जागरूक किया गया। उन्हें अपने साथ जोड़ा गया। हर पौधे का संरक्षण कोई ना कोई स्थानीय शख़्स कर रहा है। साल 2020 में हुई ये गंगा परिक्रमा यात्रा के 2 साल पूरे हो चुके हैं और उनके लगाए 95 फ़ीसदी पौधे आज आसमान की तरफ़ बढ़ रहे हैं। गंगा परिक्रमा का ये चरण 11 साल तक चलेगा और हर बार इसी तरह गंगा पथ पर पौधे लगाए जाएंगे। ज़रा सोचिए, 11 साल बाद जब आसमान से गंगा को देखेंगे तो गंगा के दोनों किनारों पर वृक्षों की माला नज़र आएगी।

इसी तरह ग्रीन इंडिया फाउंडेशन का एक महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट है ‘तारुण्य’। इसके तहत संस्था शिक्षण संस्थानों से संपर्क करती है। कोशिश इस बात की है कि जब बच्चे स्कूल या कॉलेज में दाख़िला लें तो दाख़िले के साथ ही उनसे एक पौधा लगवाया जाए। जैसे-जैसे बच्चे पढ़ते जाएंगे, उनके लगाए पौधे बढ़ते जाएंगे। इससे बच्चों में पर्यावरण के प्रति एक जुड़ाव भी पैदा होगा, पेड़-पौधों से बच्चों का एक रिश्ता बनेगा। दिल्ली यूनिवर्सिटी के कई कॉलेज इस कार्यक्रम से जुड़ चुके हैं। आप भी अगर ग्रीन इंडिया फाउंडेशन से जुड़ना चाहते हैं तो उनकी वेबसाइट https://www.greenif.org/ पर जाकर संपर्क कर सकते हैं।