जो लोग जड़ से जुड़े होते हैं वो कितने भी क़ामयाब क्यों ना हो जाएं, अपनी मिट्टी, अपने गांव, अपने इलाक़े को ना भूलते हैं ना छोड़ते हैं। कई बार तो ऐसे मौक़े भी आते हैं जब वो ख़ुद को मिल रहे सुनहरे अवसरों को भी अपने इलाक़े से दूर होने के डर से छोड़ देते हैं। ऐसे लोग अपना पूरा जीवन अपने इलाक़े, अपने लोगों के लिए, उनके बीच में रहते हुए गुजार देते हैं। इंडिया स्टोरी प्रोजेक्ट की आज की कहानी ऐसे शख़्स की जिन्हें लोग आम तौर पर सुंदरबन के सुजान के नाम से जानते हैं।
मिट्टी से जुड़ा महामानव
पश्चिम बंगाल के उत्तर 24 परगना के हिंगलगंज के लोग हर शनिवार अपने देवता का इंतज़ार करते हैं। बड़ी बेसब्री से, रास्ते पर पलकें टिकाए। दूसरी तरफ़ वहां से क़रीब 90 किलोमीटर दूर से उनका ये देवता ऑटो, ट्रेन और नाव से सफ़र करता हुआ कोलकाता से इस सुदूर जगह के लिए निकलता है। इस मुश्किल सफ़र को तय करने में शाम होने लगती है लेकिन ऐसा शायद ही कभी हुआ हो कि वो गांव ना आया हो। अगली सुबह गांव में ही बने धर्मार्थ अस्पताल में वो लोगों की जांच करते हैं, उन्हें दवाएं देते हैं वो भी बिल्कुल फ़्री। गांववालों के इस देवता का नाम है डॉक्टर अरुणोदय मंडल। अपने नाम के अर्थ को साकार करने वाले डॉक्टर अरुणोदय वाकई ना केवल अपने गांव और अपने इलाक़े के लिए बल्कि पूरी मानवता के लिए एक सूरज की तरह रोशनी दिखाने वाले हैं। यूं तो डॉक्टर अरुणोदय कोलकाता के लेक टाउन में रहते हैं लेकिन वो हर हफ़्ते और कई बार हफ़्ते में दो बार सुंदरबन के हिंगलगंज जाते रहते हैं।
सुंदरबन से जन्म का रिश्ता
डॉक्टर अरुणोदय का जन्म साल 1953 में इसी सुंदरबन के हिंगलगंज के चंद्रखाली गांव में हुआ था। अरुणोदय के चार भाई और पांच बहनें थी। परिवार तंगहाली में जीवन बिता रहा था लेकिन शिक्षा से उनका गहरा नाता था। दादा और पिता ने गांव में ही शिक्षा निकेतन स्कूल खोला था जिसमें गांव के बच्चों के साथ-साथ अरुणोदय और उनके भाई-बहन भी पढ़ते थे। बड़े हुए तो पढ़ने के लिए कोलकाता चले गए। पढ़ाई में तेज़ थे लेकिन जेब से तंग। अरुणोदय ने वहां पढ़ाई के साथ-साथ ट्यूशन पढ़ाना शुरू कर दिया। इससे होने वाली आमदनी से उनका गुज़ारा चलने लगा। अरुणोदय की मेहनत रंग लाई। MBBS की पढ़ाई के लिए उनका एडमिशन नेशनल मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल में हो गया। पढ़ाई के बाद उन्होंने डॉ. बी.सी.रॉय मेमोरियल अस्पताल में काम किया. इसके अलावा कई चैरेटिबल अस्पतालों में सेवाएं दीं लेकिन उन्हें उनका गांव बुलाता रहा। आख़िरकार 1980 में उन्होंने नौकरी छोड़ कर अपने गांव के लिए काम करने का फ़ैसला किया।
42 साल से लगातार सेवा
तब से अरुणोदय मंडल हर हफ़्ते कोलकाता से भारत-बांग्लादेश सीमा पर बसे अपने गांव हिंगलगंज जाते हैं और लोगों का इलाज करते हैं। एक अनुमान के मुताबिक वो हर हफ़्ते 250 से ज़्यादा मरीज़ों का इलाज़ करते हैं। अपने काम को आगे बढ़ाते हुए साल 2006 में उन्होंने ज़मीन ख़रीदकर दो मंजिला धर्मार्थ अस्पताल का निर्माण भी कर दिया। ये ना सिर्फ़ उनके बल्कि आसपास के इलाक़ों में रहने वाले लोगों के लिए किसी संजीवनी से कम नहीं था। यहां वो लोगों की तमाम तरह की बीमारियों का इलाज करते हैं, दवाएं बांटते हैं और समय-समय पर ब्लड डोनेशन कैंप भी चलाते हैं। अब तक वो क़रीब 20 हज़ार लोगों का फ़्री इलाज कर चुके हैं।
सुंदरबन को ज़रूरत है स्वास्थ्य सेवाओं की
डॉक्टर अरुणोदय के सुंदरबन के लोगों के लिए काम करने की दो बड़ी वजह है। पहली ये कि वो ख़ुद इस इलाक़े से जुड़े हैं, यहां जन्में हैं तो उनका एक भावनात्मक रिश्ता यहां से जुड़ा हुआ है लेकिन उससे भी बड़ी वजह ये है कि वो जानते हैं कि इस इलाक़े के स्वास्थ्य सेवाओं की कितनी ज़रूरत है। हर तरफ़ पानी और दलदल से घिरा सुंदरबन कई द्वीपों से बना हुआ है। सड़क, बिजली, पानी और अस्पताल जैसी बुनियादी सुविधाओं से पूरी तरह महरूम इस इलाक़े के लोग कई तरह की गंभीर बीमारियों से पीड़त रहते हैं। पेट के कीड़े, टाइफाइड, पीलिया, अस्थमा समेत कई बीमारियां यहां के लोगों को अपनी चपेट में लेती रहती हैं। इसके साथ ही हैंडपंप के पानी में आर्सेनिक की वजह से कैंसर जैसे ख़तरे भी बढ़ते जा रहे हैं। महिलाएं एनिमिया और बच्चे कुपोषण से पीड़ित हैं। इन्हीं हालातों को जानते और समझते हुए डॉक्टर अरुणोदय ने सुंदरबन में अस्पताल खोलने और लोगों का फ़्री में इलाज करने का फ़ैसला किया।
पद्मश्री से सम्मानित अरुणोदय
साल 2020 में उन्हें मानवता के लिए बेहतर काम करने के लिए भारत सरकार ने पद्मश्री से सम्मानित किया। इस सम्मान को भी उन्होंने ज़िम्मेदारी के तौर पर देखा और लोगों की सेवा में और जी-जान से जुट गए। उनकी कोशिश है कि देश के वंचितों तक वो बुनियादी सुविधाएं पहुंच सके जिनके वो हक़दार हैं। इंसानियत के इस मसीहा को इंडिया स्टोरी प्रोजेक्ट का सलाम।
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