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बंदे में है दम

हार नहीं मानने का जज़्बा

वो हार मानने वालों में से नहीं हैं। मुश्किलें उनकी राह नहीं रोक सकतीं। नाक़ामी उन्हें तोड़ नहीं सकती। शारीरिक अक्षमता को उन्होंने अपनी कमज़ोरी नहीं बनने दी। अपनी हिम्मत, अपने हौसले, अपने जज़्बे से आज वो एक मिसाल बन चुकी हैं। आज इंडिया स्टोरी प्रोजेक्ट में कहानी उसी शख़्सियत की जिनका नाम है आयुषी डबास।

आयुषी को संघर्ष से मिली सफलता

आयुषी ने कभी अपनी आंखों से दुनिया नहीं देखी, लेकिन उन्होंने दुनिया को दिखा दिया कि वो किसी के कम नहीं हैं। दिल्ली की रहने वाली आयुषी ने देश की सबसे प्रतिष्ठित परीक्षा UPSC ना केवल पास की है बल्कि देश भर में 48वां रैंक हासिल किया है।

29 साल की आयुषी का जीवन अपने आप में ही एक संघर्ष है। आयुषी बचपन से ही देख पाने में असमर्थ हैं। बिना आंखों के जीवन कितना दुश्वार हो सकता है ये आसानी से समझा जा सकता है लेकिन उन्होंने इस दुश्वारी से ना केवल लड़ना सीखा बल्कि अपने लिए एक के बाद एक नए रास्तों की तलाश की, अपनी हिम्मत से उन रास्तों पर चलीं और मंजिल भी हासिल की।

2015 में शुरू की तैयारी

आयुषी भले ही देख नहीं सकती थीं लेकिन पढ़ाई में वो हमेशा आगे रहीं। आयुषी ने अपनी स्कूली शिक्षा दिल्ली में ही की। दिल्ली विश्वविद्यालय के श्यामा प्रसाद मुखर्जी कॉलेज से बीए किया और फ़िर इग्नू से इतिहास में मास्टर्स। साल 2012 से वो स्कूलों में पढ़ा रही हैं। पिछले दस साल से वो दिल्ली में MCD के एक प्राथमिक विद्यालय के शिक्षिका थीं। 2019 में उन्होंने दिल्ली अधीनस्थ सेवा चयन बोर्ड की परीक्षा पास की। इसके बाद वो दिल्ली सरकार के सीनियर सेकेंडरी गर्वमेंट गर्ल्स स्कूल में इतिहास की लेक्चरर के रूप में बच्चों को पढ़ा रही थीं। इसी दौरान साल 2015 में उन्होंने UPSC की परीक्षा देने का फ़ैसला किया। शारीरिक परेशानी और नौकरी के साथ UPSC की तैयारी बहुत मुश्किल थी लेकिन आयुषी ऐसी मुश्किलों से डरने वाली नहीं थीं।

परिवार का मिला पूरा साथ

आयुषी ने UPSC की तैयारी शुरू कर दी। इसमें उनके परिवार ने पूरा साथ दिया। इस तैयारी के लिए आयुषी ने स्मार्ट फ़ोन चलाना सीखा। कंप्यूटर पर ख़ास सॉफ़्टवेयर सीखा। तब इंटरनेट पर UPSC की तैयारी के लिए अब की तरह उतनी जानकारियां उपलब्ध नहीं थीं। उस समय आयुषी के घरवाले स्टडी मैटेरियल को पूरा पढ़ते थे जिसे आयुषी रिकॉर्ड कर लेती थीं। बाद में उसे सुन कर याद करती थीं। धीरे-धीरे जब You Tube पर स्टडी मैटेरियल मिलने लगा तो वो उससे भी पढ़ाई करने लगीं। भाई हमेशा आयुषी को कोचिंग छोड़ने-लाने के लिए तैयार रहता था। पति और पिता का भी इस तैयारी में उन्हें पूरा साथ मिला। वैसे तो अपनी इस क़ामयाबी का श्रेय आयुषी पूरे परिवार को देती हैं लेकिन अपनी मां के प्रति उनका कुछ ज़्यादा ही झुकाव है। बचपन से ही उनकी मां हमेशा उनके साथ खड़ी रहीं। यहां तक की उनकी देखभाल के लिए उन्होंने अपनी सरकारी नौकरी भी छोड़ दी।

चौथे प्रयास में मिली कामयाबी

आयुषी को ये कामयाबी पहले प्रयास में नहीं मिली। इससे पहले वो तीन बार UPSC की परीक्षा पास नहीं कर पाई थीं। वो बताती हैं कि कई बार निराशा के बादलों ने उनके मन में भी डेरा डालने की कोशिश की। कई बार लगा कि शायद वो ये परीक्षा पास नहीं कर पाएंगी लेकिन इरादों की पक्की आयुषी ने इन नकारात्मक विचारों को ख़ुद से दूर किया और हर बार नई ऊर्जा, नए जोश के साथ तैयारी में जुट गईं। आख़िरकार परिणाम सकारात्मक रहे। आयुषी ने देश भर में 50वीं रैंक के अंदर में अपने लिए जगह बनाई।

हर तरफ़ सम्मान और प्यार

रिज़ल्ट के बाद से ही आयुषी को बधाई संदेश मिल रहे हैं। दिल्ली यूनिवर्सिटी और दिल्ली सरकार ने उन्हें सम्मानित किया। जानकार, रिश्तेदार, दोस्त सब उन्हें बधाई दे रहे हैं। लोगों के इस प्यार और सम्मान से आयुषी का हौसला और बढ़ा है। ऐसा नहीं है कि आयुषी से पहले किसी दिव्यांग ने बड़ी कामयाबी हासिल नहीं की है, लेकिन ऐसी हर कामयाबी एक नई कहानी लिखती है। आयुषी की इस कामयाबी ने लोगों को एक नई रोशनी दिखाई है। उन लोगों को जीने और लड़ने का जज़्बा दिया है जो देख नहीं सकते। आयुषी ने उन्हें बताया है कि भले वो आंखों से नहीं देख सकते लेकिन वो कुछ करने, कुछ बनने का सपना देख सकते हैं और अपने हौसलों के दम पर उन सपनों को साकार कर सकते हैं।