Home » दुनिया को चाहिए और अंजिना
बंदे में है दम

दुनिया को चाहिए और अंजिना

दुनिया में लाखों बच्चे ऐसे हैं जिनके सर से मां-बाप का साया बहुत कम उम्र में ही छिन जाता है। उनका बचपन अंधकार और अभावों से घिर जाता है। और ऐसे ही बच्चों के लिए उम्मीद की किरण हैं हमारी आज की स्टोरी की नायक- अंजिना राजगोपाल।

400 से ज़्यादा बच्चों की ‘मां’

अंजिना राजगोपाल दिल्ली से सटे नोएडा में रहती हैं। साल 1990 में एक बच्चे को शरण देने के साथ शुरू हुआ उनका ये सिलसिला आज 400 का आंकड़ा पार कर चुका है। साई बार कुटीर की संस्थापक अंजिना राजगोपाल का अपना जीवन भी कभी आसान नहीं रहा। 61 साल की अंजिना की मां की मृत्यु बहुत ही कम उम्र में हो गयी थी। इसके बाद उनके भाई की मौत ने भी उन्हें तोड़ दिया। अपने पिता के साथ मौसी के घर दिल्ली आकर रहने वाली अंजिना ने अनाथ और बेसहारा बच्चों का जीवन संवारने के क्रम में खुद कभी शादी भी नहीं की।

कर्नाटक से नोएडा का सफर

कर्नाटक के बेल्लारी में जन्मी अंजिना राजगोपाल के पिता पीके राजगोपाल एक खदान कंपनी में मैनेजर थे। चार भाई और तीन बहनों में तीसरे नंबर की अंजिना केवल 10वीं तक ही शिक्षा प्राप्त कर सकीं। अंजिना जब बेल्लारी में रहती थी तब भी उन्हें अपने घर के आसपास सड़क किनारे रहने वाले बच्चों को देखकर अफसोस होता रहता था। लेकिन, तब वो इतनी छोटी थी कि वो इस बात को ठीक से महसूस नहीं कर पाती थी।

साल 1976 में कर्नाटक छोड़ कर अंजिना साल 1983 से नोएडा में रह रही हैं। अंजिना के जीवन में मोड़ उस वक्त आया था जब उन्होंने सड़क किनारे एक दिव्यांग बच्चे को पिटते हुए देखा। इस घटना को देख उनका दिल पसीज गया। उन्होंने उस बच्चे के बारे में पता किया और वह उस बच्चे को घर ले आईं। उन्होंने उसका नाम रजत रखा। यह सबसे पहला बच्चा था जिसे उन्होंने अपने किराए के मकान में रखा। उन्होंने इसकी जानकारी पुलिस को भी दी और इसके बाद उन्होंने 1990 में बाल कुटीर नाम से एक अनाथालय की शुरुआत कर दी। जिसमें अनाथ बच्चों के आने का सिलसिला शुरू हो गया और आज यह शहर का जाना-माना अनाथालय है। इसमें रहने वाले बच्चों सहित गांवों में गरीब बच्चों को शिक्षित करने के लिए जनसहयोग से उन्होंने एक स्कूल की स्थापना कराई। यहां बच्चों को 12वीं तक की शिक्षा दी जाती है।

बच्चों के साथ बिताया पूरा जीवन

अंजिना कभी भी किसी अलग घर में नहीं रहीं। वो हमेशा से ही इन बच्चों के बीच रहती आयी हैं। यहां रहने वाले सभी बच्चों को शिक्षा समेत सभी सुविधाएं दी जाती हैं। जो बच्चे खुद सक्षम हो जाते हैं और अपने पैरों पर खड़े हो जाते हैं वह अपने हिसाब से जीवन जीने लगते हैं और यहां रहे कई बच्चों के अब परिवार भी बस गए हैं और वह दादी और नानी भी बन गईं हैं। आज भी वह बच्चे अपने परिवारों के साथ यहां आते रहते हैं। अंजिना के जीवन की उपलब्धि, संपत्ति और ताकत उनके यहीं बच्चे हैं।
अंजिना इस उम्र में भी बेहद सक्रिय हैं और ऐसे बच्चों को खोजकर उनकी मदद करने में लगी हुई है। वो अंत तक रुकना नहीं चाहती हैं। वो चाहती हैं कि उनके साथ अधिक से अधिक लोग जुड़े और ऐसे बच्चों की मदद करें। इंडिया स्टोरी प्रोजेक्ट की ओर से अंजिना को बधाई…