जैविक खेती हमारे देश की परंपराओं में शामिल है। अधिक उत्पादन के लिए हमने जैविक खेती को छोड़ कर रासायनिक खाद का इस्तेमाल शुरू कर दिया। इससे उत्पादन तो बढ़ा लेकिन खेती ख़राब हो गई। ज़मीन ख़राब हो गई और सबसे ज़्यादा हमारी परंपरा को भी नुकसान पहुंचा। लेकिन अब हम वापस अपनी जड़ों की तरफ़ लौट रहे हैं। जैविक खेती की तरफ़ हमारी वापसी हमारे समाज में भी कई सकारात्मक बदलाव ला रही है। आज इंडिया स्टोरी प्रोजेक्ट में हम एक ऐसी नायिका की कहानी लेकर आए हैं जो इस बदलाव का मजबूत स्तंभ हैं। ये कहानी है मेघालय की ट्रिनिटी सायो की।
खेती से बदली गांव की तक़दीर
हल्दी वाला दूध, शादी में हल्दी का लगना, बच्चे के उबटन में हल्दी का प्रयोग, पूजा पाठ में हल्दी का चढ़ना। हल्दी हमारे लिए जितनी अहम है उतनी ही पवित्र भी। देश के कई इलाकों में अलग अलग प्रकार की हल्दी होती भी है। हल्दी कई बीमारियों का रामबाण भी है। भारत ने हल्दी के लिए पेटेंट भी हासिल किया है। देश में कई तरह की हल्दियों में लेकाडॉग हल्दी बेहद ख़ास है। इसे हल्दी की सभी प्रजातियों में सबसे बेहतरीन माना जाता है। पिछले कुछ सालों से मेघालय के वेस्ट जयंतिया हिल्स के मुलीह गांव में इसकी बड़े पैमाने पर खेती की जा रही है। गांव में क़रीब 230 परिवार रहते हैं और आज के समय ये सारे परिवार लेकाडॉग हल्दी की खेती कर रहे हैं। ऐसा नहीं है कि ये गांव पहले हल्दी की ही खेती करता था। मेघालय के दूसरे गांवों की तरह यहां भी कई तरह की समस्याएं थीं। जो परिवार खेती से जुड़े थे उनकी आमदनी बेहद कम थी। कुछ परिवार हल्दी की भी खेती करते थे लेकिन उसकी गुणवत्ता अच्छी नहीं थी। इससे बाज़ार में उसका उतना भाव नहीं मिलता था जितनी उसकी खेती में मेहनत लगती थी। फिर गांव को एक नई दिशा दिखाई स्कूल टीचर ट्रिनिटी सायो ने। ट्रिनिटी ना केवल पढ़ी लिखी थी बल्कि सकारात्मक बदलाव के प्रति उत्साहित भी रहने वाली थीं। नई चीज़ों को जानना समझना उन्हें अच्छा लगता था। गांव की स्थिति और युवाओं के पलायन से वो काफ़ी दुखी रहती थीं। इसी परेशानी का हल उन्होंने अपने खेत में ढूंढा। उन्हें पता चला कि लेकाडॉग हल्दी का उत्पादन फ़ायदेमंद साबित होता है। लेकाडॉग हल्दी में करम्यूमिन 12 प्रतिशत तक पाया जाता है जो इसे सर्वश्रेष्ठ बनाता है जबकि सामान्य हल्दी में ये केवल 2 फीसदी तक होता है। यही वजह है कि इस हल्दी की बाज़ार में मांग ज़्यादा है। इसी वजह से ट्रिनिटी ने इसी लेकाडॉग की खेती से गांव की किस्मत बदलने की ठान ली।
क्रांतिकारी ट्रिनिटी
हल्दी के उत्पाद के रूप में राज्य में क्रांति लाने वाली ट्रिनिटी सायो मूलतः किसान नहीं हैं। पेशे से एक शिक्षक ट्रिनिटी ने खेती की शुरुआत पार्ट टाइम जॉब के रूप में थी। जब उन्हें इस हल्दी का पता चला तो वो इसके बारे में और जानकारी जुटाने में लग गईं। इसकी खेती, सिंचाई, कटाई से जुड़ी तमाम बातों का पता लगाने के लिए उन्होंने शिलॉन्ग मसाला बोर्ड से भी संपर्क साधा। जब उन्हें लगा कि अब वो इसकी खेती के लिए तैयार हैं तो उन्होंने हल्दी के बीज मंगवाए और अपने खेत में उन्हें बो दिया। वो अपने काम से जब भी समय मिलता, उसे खेत में ख़र्च करतीं। हल्दी की फसल की देखभाल, सिंचाई, गुड़ाई करने में समय बिताती। उनकी मेहनत रंग लाई। जब हल्दी की फसल तैयार हुई तो लोग देखते ही रह गये। लेकाडॉग हल्दी को पहचानने वाले ख़रीदारों ने अच्छा पैसा भी दिया। इसके बाद तो गांव के लोगों में भी इसकी खेती को लेकर दिलचस्पी जाग उठी। ट्रिनिटी ने किसी को भी निराश नहीं किया। उन्होंने इस हल्दी की किस्म, उसकी खेती के बारे में लोगों को पूरी जानकारी दी। धीरे-धीरे गांव के सभी परिवार लेकाडॉग हल्दी की खेती करने लगे।
तरक्की राह पर आगे बढ़ता मुलीह गांव
ये ट्रिनिटी सायो की ही मेहनत का फल है कि आज उनका गांव मुलीह तरक्की की राह पर चल पड़ा है। इस वक्त ट्रिनिटी इस कार्य को आसपास के गांवों तक फैलाने में लगी हुई हैं। मुलीह के पास बसे मदनकिंसव, मिंकटुंग, आरटिंग, पाइंती और लासकिन गांव तक के लोगों को वो इसके फायदे बता चुकी हैं। उन्होंने अब तक कुल मिलाकर 800 गांववालों को ये खेती सिखा दी है। उन्होंने इस किसानों के साथ मिलकर लेंग खेम स्पाइस सोसायटी के नाम से सहकारी समिति की भी शुरुआत की है। इसी सहकारी समिति को साल 2018 में उन्होंने सीडी ब्लॉक लेस्किन के लाइफ स्पाइस फेडेरेशन ऑफ सेल्फ हेल्प ग्रुप्स में तब्दील किया। साल 2018 में उन्होंने लेकाडॉग टर्मरिक मिशन की शुरुआत की। आज इसके अंतर्गत 100 से ज्यादा स्वयं सहायता समूह कार्य करते हैं। मुलीह गांव में उपजाई जा रही हल्दी अब कई जगह भेजी जा रही है। अपनी शिक्षा और अपने बातचीत के अंदाज़ का इस्तेमाल कर ट्रिनिटी सैयू ने लेकाडॉग हल्दी के फायदे लोगों को बताये और उन्हें समझाया कि कैसे इसे उगाकर और बेचकर वो अपनी आय को तिगुना कर सकते हैं।
ट्रिनिटी को सम्मान
15 अक्टूबर 2018 को महिला किसान दिवस के मौक़े पर दिल्ली में आयोजित कार्यक्रम में ट्रिनिटी को सम्मानित किया गया। खेती में नवाचार के लिए उनके योगदान को सराहा गया। इसके बाद साल 2020 में पद्म श्री सम्मान से भी अलंकृत किया गया।
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