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बंदे में है दम

सच की राह पर चलने वाला सच्चा सिपाही

वो एक व्हिसिल ब्लोअर हैं, वो एक ईमानदार अधिकारी हैं, वो निडर हैं, देश प्रेम उनमें कूट-कूट कर भरा है। वो देश के लिए, अपने कर्तव्यों के लिए, अपनी ईमानदारी के लिए जान देने के लिए भी तैयार रहते हैं। ये बातें फ़िल्मी नहीं है, हक़ीकत है। ऐसी हक़ीक़त जो रिंकू को हर किसी से अलग बनाता है, ऊंचा बनाता है। कुछ ही दिन हुए, UPSC-2022 के नतीजे आए हुए। हर तरफ़ परीक्षा में अव्वल आए हुए कैंडिडेट्स के चर्चे हैं। होने भी चाहिए। देश की सबसे बड़ी और प्रतिष्ठित सेवा की परीक्षा पास करना बहुत बड़ी बात होती है। ज़बरदस्त परिश्रम, लगन और जज़्बे की बदौलत ये लोग आज इस मुक़ाम पर पहुंचे हैं। हर किसी का अपना संघर्ष होता है लेकिन कई ऐसे संघर्ष होते हैं जो हमें अंदर तक झकझोर देते हैं। कुछ ऐसी ही है UPSC की परीक्षा पास करने वाले रिंकू सिंह राही की कहानी।

सफलता के बाद भी संघर्ष

एक सरकारी अधिकारी से हम क्या उम्मीद करते हैं ? यही ना कि वो अपना काम ईमानदारी से करे। नियम-क़ायदों का पालन करे। जनता की भलाई के लिए काम करे। लेकिन जब कोई अधिकारी वाकई ये पूरी निष्ठा के साथ करना शुरू करता है तो उसके साथ क्या होता है ये रिंकू की कहानी हमें बताती है।

ईमानदारी की चक्की का खाया आटा

बहुत आम सी कहावत है कि हर किसी को भगत सिंह चाहिए लेकिन अपने नहीं पड़ोसी के घर में। लेकिन अलीगढ़ में एक छोटी सी आटा चक्की चलाने वाले शिवदान सिंह ने कभी ऐसा नहीं सोचा। ख़ुद ईमानदारी की रोटी खाने वाले शिवदान सिंह ने अपने बच्चे को भी इसी का पाठ पढ़ाया। सत्य, निष्ठा, देशप्रेम, ईमानदारी की जो बातें हमें क़िताबों या नेताओं के भाषणों में मिलती हैं वो शिवदान सिंह और उनके पूरे परिवार के लहू में बहती है। इन्हीं शिवदान सिंह के बेटे हैं रिंकू सिंह राही। ग़रीबी और तंगहाली में भी अपनी मेहनत से अच्छी पढ़ाई कर रिंकू आगे बढ़ते रहे। इंजीनियरिंग की पढ़ाई की। गेट की परीक्षा भी पास की लेकिन मन प्रशासनिक सेवा में काम करने का था। 2004 में UP-PCS की परीक्षा दी। नतीजा 2007 में आया। रिंकू ने परीक्षा पास कर ली थी। ज्वाइनिंग होने में दो साल और लगे। साल 2009 में मुज़फ़्फ़रनगर में समाज कल्याण अधिकारी के पद पर तैनाती हुई।

भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ बिगुल

समाज कल्याण विभाग में काम करने के दौरान उन्होंने वहां चल रहे 83 करोड़ के घोटाले का पता चला। जांच की तो मामला सही निकला। बताया जाता है कि उसमें विभाग के कई अधिकारी और कर्मचारियों की भी मिली-भगत थी। जब घोटालेबाज़ों को पता चला कि रिंकू को उनकी कारगुज़ारियों की भनक लग गई है तो उन्होंने 4 करोड़ के रिश्वत की ऑफ़र दी। धमकी भी दी गई। लेकिन पिता की सीख और ईमानदारी के जज़्बे रिंकू को बेइमानों के आगे झुकने नहीं दिया। रिंकू बताते हैं कि जब उन्हें रिश्वत की पेशकश और धमकी मिली तो उन्होंने अपने पिता से बात की। उन्हें बताया कि जान का ख़तरा है। कोई और पिता होते तो शायद अपने बेटे की जान की परवाह करते हुए उसे इन सबसे दूर रहने की सलाह देते, लेकिन वो तो शिवदान सिंह थे। उन्होंने अपने बेटे से सच की राह पर आगे क़दम बढ़ाने का हौसला दिया।

जानलेवा हमले का शिकार

रिंकू राही ने सच का साथ देने और घोटालेबाज़ों के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने की ठान तो ली लेकिन उन्हें इसके गंभीर परिणाम भुगतने पड़े। पहले तो सरकारी ज़मीन पर कब्ज़े का विरोध करने पर उनके साथ मारपीट की गई। और फ़िर घोटाले के ख़िलाफ़ कार्रवाई करने की वजह से 26 मार्च 2009 को बैडमिंटन खेलते समय बाइक सवार दो हमलावरों ने उनपर अंधाधुंध गोलियां बरसा दी। रिंकू को एक-दो नहीं सात गोलियां लगीं। गनीमत रही कि रिंकू की जान बच गई, लेकिन चेहरे पर गोली लगने की वजह से उनकी एक आंख की रोशनी चली गई, चेहरा भी बिगड़ गया।

गोलियां खाकर भी नहीं डिगा हौसला

रिंकू इस हमले में बाल-बाल बचे थे लेकिन इतनी गोलियां खाकर भी उनका हौसला कमज़ोर नहीं हुआ। उन्होंने तो अब भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ अपनी लड़ाई और तेज़ कर दी। लेकिन उन्हें सरकार का साथ नहीं मिला। जब वो ठीक होकर मुज़फ़्फ़रनगर पहुंचे और ड्यूटी ज्वाइन करनी चाही तो उन्हें ज्वाइन नहीं करने दिया गया। उनका तबादला सीतापुर कर दिया गया। राही को लगा कि ये भ्रष्टाचारियों को बचाने की कोशिश की जा रही है। रिंकू ने इसके ख़िलाफ़ लखनऊ में आमरण अनशन शुरू कर दिया। इसके बाद रिंकू को जबरन उठाकर पहले अस्पताल और फिर मेंटल हॉस्पिटल भेज दिया गया। उन्हें पागल करार देने की कोशिश हुई लेकिन रिंकू नहीं हारे।

जहां रहे वहीं जंग लड़ी

आख़िरकार उन्हें फिर से नौकरी मिली। उन्हें भदोही का समाज कल्याण अधिकारी बनाया गया। लेकिन रिंकू ने वहां भी अपात्रों को योजना का लाभ देने के घोटाले का पर्दाफाश कर दिया। केवल 4 महीने में रिंकू का तबादला कर दिया गया। इसके बाद श्रावस्ती और ललितपुर में भी इसी तरह की धांधलियों के ख़िलाफ़ उन्होंने आवाज़ उठाई।

सैकड़ों बच्चों को बनाया अधिकारी

रिंकू फ़िलहाल हापुड़ में समाज कल्याण अधिकारी हैं। वो राजकीय IAS-PCS कोचिंग सेंटर के प्रभारी भी हैं। अब तक उनकी कोचिंग में पढ़ कर कई बच्चों ने सरकारी नौकरी हासिल की है। वो बताते हैं कि कोचिंग के बच्चों के दबाव पर ही उन्होंने UPSC की परीक्षा देने का फ़ैसला किया था और उन्होंने 683वीं रैंक लाकर अपने बच्चों के प्यार और लगाव का सम्मान रखा।
रिंकू सिंह राही जैसे अधिकारी ही समाज और देश में बदलाव लाने का प्रयास कर रहे हैं। उनकी ईमानदारी, उनके देश प्रेम और उनके हौसले को इंडिया स्टोरी प्रोजेक्ट सलाम करता है।