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धरती से

सपनों को पंख देने की कोशिश

ताज नगरी आगरा में पिछले कई सालों से कचरे से कंचन बनाने का पुण्यकर्म अनवरत जारी है। एक युवा जो अपने गुजर-बसर के लिए किये जा रहे काम के साथ-साथ समाज और देश के प्रति अपने कर्तव्य को निभाने की पुरज़ोर कोशिश में जुटा है। उन सपनों को पंख देने की कोशिश कर रहा है जिनके साकार होने की कल्पना करना भी मुश्किल है। लेकिन उस युवा की सोच, जज़्बा और साथियों का साथ, उनके अभियान को आगे बढ़ा रहा है।

सड़क किनारे शिक्षा

गर आप आगरा घूमने आएं हैं और अचानक कहीं सड़क किनारे कुछ बच्चों की चल रही पाठशाला देखें शायद आप हैरान रह जाएंगे, लेकिन आगरा के लोगों के लिए अब ये आम बात हो गई है। हां कुछ साल पहले वो भी इसे देखकर ज़रूर ठिठक जाते थे। यही तो वो पाठशाला है जहां कचरे से कंचन बनाने का काम किया जा रहा है।

सड़क पर चल रहे इस स्कूल के संचालक हैं नितिन कुमार शुक्ल। नितिन मूल रूप से आगरा के ही रहने वाले हैं। जयपुर से पत्रकारिता एवं जनसंचार की पढ़ाई कर चुके नितिन ने अपना करियर एक स्थानीय टीवी चैनल से शुरू किया था। इसी दौरान कुछ ऐसा हुआ जिसने उनकी सोच और समझ बिल्कुल बदलकर रख दी।

नरेश पारस से मिली ज़िंदगी की नई दिशा

साल 2017 में टीवी चैनल में काम करने के दौरान नितिन की मुलाक़ात आगरा एक प्रसिद्ध समाजसेवी नरेश पारस से हुई, और इस एक मुलाक़ात ने नितिन के जीवन को एक नई दिशा दे दी। नरेश पारस जी ने नितिन को समाज के उन पहलुओं से रू-ब-रू कराया जिनके लिए काम करने की बहुत ज़्यादा ज़रूरत थी। नरेश जी से नितिन का संपर्क बढ़ता गया और नितिन अपनी ज़िंदगी का लक्ष्य तय करते चले गए। नितिन ने उन बच्चों की शिक्षा के लिए काम करना शुरू किया जो समाज के बिल्कुल निचले पायदान पर थे। एक ऐसी बस्ती चुनी जहां मज़दूर वर्ग के लोग ज़्यादा रहते थे। उनके बच्चे स्कूल नहीं जाते थे। पढ़ाई से दूर-दूर तक का नाता नहीं था। कुछ बच्चे स्कूल जाते भी थे तो बस नाम के लिए ही। नितिन ने उन लोगों से बात करनी शुरू की। लोगों को शिक्षा के महत्व के बारे में समझाया। नितिन ने तय कर लिया था कि वो उसी बस्ती में आकर उन बच्चों को पढ़ाएंगे। नितिन की बातों ने असर दिखाया और जब उन्होंने बस्ती में क्लास लेनी शुरू की तो बच्चे भी उसमें पहुंचने लगे। नितिन बच्चों के घर के बाहर ही पाठशाला लगाने लगे।

कामयाबी से बढ़ा हौसला

सड़क पर शुरू हुए अपने पहले स्कूल की कामयाबी ने नितिन के इरादों को और मजबूत कर दिया। अपने गुरू नरेश पारस की सलाह और मदद की बदौलत इन 5 सालों में नितिन आगरा की 4 अलग-अलग जगहों बच्चों की पाठशालाएं चला रहे हैं। फिलहाल इन पाठशालाओं में 168 बच्चे पढ़ने आते हैं। ख़ास बात ये है कि इनमें से 100 बच्चे तो ऐसे हैं जो कभी स्कूल नहीं गए। कई बच्चे बाल मज़दूरी कर रहे थे। कई बच्चे कचरा बीनने का काम करते थे। नितिन ने इन सबको अपने साथ जोड़ा। उन्हें एक नई रोशनी दी। नितिन अब इन बच्चों का स्कूल में दाखिला कराने पर काम कर रहे हैं। बच्चों को पढ़ाने के साथ-साथ वो इन्हें पढ़ाई की सामग्रियां भी उपलब्ध कराते हैं। क़िताबें-कॉपियां, पेंसिल जैसी ज़रूरी चीज़ें बच्चों को मुहैया कराई जाती है।

जज़्बे के दम पर आगे बढ़े

नितिन ने पत्रकारिता के करियर को पीछे छोड़ दिया है। घर चलाने के लिए वो परचून की दुकान चला रहे हैं। इस व्यस्त और थका देने वाले काम के बावजूद वो अपने मिशन से पीछे नहीं हटे हैं। रोज़ाना सुबह 8 बजे वो अपने घर से करीब 17 किलोमीटर दूर बच्चों को पढ़ाने के लिए जाते हैं। कई बार घर से इन कामों को छोड़ कर अपनी दुकान पर ध्यान देने का दबाव पड़ता था, कई बार पैसों की तंगी मुश्किल बढ़ा देती थी लेकिन नितिन ने ठान लिया ता कि उन्हें रुकना नहीं है। उनका मानना है कि इतना काम करने के बाद अब अगर वो पीछे हटते हैं तो वो उन बच्चों के साथ विश्वासघात होगा जिन्हें उन्होंने पढ़ाना शुरू किया है।

इंडिया स्टोरी प्रोजेक्ट की शुभकामनाएं नितिन के साथ है। वो ऐसे ही बच्चों के सपनों को परवाज़ देते रहें।

अगर आपके पास भी नितिन जैसे लोग हैं जो देश और समाज के लिए कुछ अलग कर रहे हैं तो भेजिए हमें उनकी कहानी- mystory@indiastoryproject.com पर