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बंदे में है दम

शिक्षा को नया स्वरूप देने की कोशिश

शिक्षा एकमात्र ऐसा ज़रिया है जिसके माध्यम से समाज बदला जा सकता है, देश बदला जा सकता है। शिक्षा एक ऐसी चीज़ है जो हर बच्चे का हक़ है लेकिन बदकिस्मती ये है कि देश के लाखों-करोड़ों बच्चे इससे वंचित हैं। शिक्षा की गुणवत्ता भी सवालों के घेरे में है। नेशनल एजुकेशन पॉलिसी 2020 के मुताबिक़ देश में 5 करोड़ बच्चे इसकी वजह से अच्छी शिक्षा नहीं हासिल कर पा रहे। प्राइमरी में पढ़ने वाला बच्चा बेसिक क्लास के सवाल नहीं जानता, मिडिल स्कूल के बच्चे प्राइमरी के। ये इसलिए होता है क्योंकि पढ़ाने के नाम पर केवल खानापूर्ति की जा रही है। बच्चों को नए और क्रियेटिव तरीक़े से समझाने के बजाय केवल क़िताबों से पढ़ कर और कॉपियों में लिख कर शिक्षा देने का काम सालों से किया जा रहा है। इसका सबसे ज़्यादा नुकसान ग़रीब और पिछड़े तबके के बच्चों को हो रहा है। इसी जर्जर शिक्षा पद्धति को बदलने की कोशिश में लगे हैं एक आचार्य। इंडिया स्टोरी प्रोजेक्ट में आज की कहानी उसी आचार्य की।

बिनायक आचार्य का थिंक ज़ोन

अच्छी और गुणवत्तापूर्ण प्रारंभिक शिक्षा जो देश के भविष्य की नींव बन सकती है और युवाओं को एक ऐसे दिलचस्प मौक़े मुहैया कराना जिससे बड़े पैमाने पर सामाजिक बदलाव हो सके।

मूल रूप से इन्हीं दो सोच के साथ काम कर रहे हैं बिनायक आचार्य। मूल रूप से कटक के रहने वाले विनायक ने कई बड़ी कंपनियों में काम किया है। वो वर्ल्ड बैंक के ग्लोबल एजुकेशन प्रैक्टिस कंसंल्टेंट रहे हैं। शुरुआत से सामाजिक कामों में दिलचस्पी लेने वाले विनायक जब वर्ल्ड बैंक के प्रोग्राम के लिए वो ओडिशा के पिछड़े और आदिवासी इलाक़ों में जाने लगे तब उन्हें अहसास हुआ कि देश के ऐसे इलाक़ों में शिक्षा की क्या स्थिति है। स्किल ट्रेनिंग के लिए आने वाले बच्चों को सामान्य स्कूली ज्ञान भी नहीं था। ऐसे में स्किल ट्रेनिंग भी उनके काम नहीं आने वाली थी। इस स्थिति को देखकर विनायक ने कुछ नया और कुछ अलग करने की ठान ली। उन्होंने शिक्षा की इस पद्धति को बदल कर बच्चों की ज़िंदगी में नया सवेरा लाने का फ़ैसला किया और तब जन्म हुआ थिंक ज़ोन का।

शिक्षा का नया मॉडल-थिंकज़ोन

आदिवासी और पिछड़े इलाक़ों में शिक्षा के स्तर में बदलाव के लिए विनायक ने अपने मॉडल पर काम करना शुरू किया। इसमें उन्होंने गांवों में बच्चों की पढ़ाई पर बुनियादी स्तर पर सुधार लाने की कवायद शुरू कर दी। अगल-अलग प्रोग्राम तैयार किये गए जिसके ज़रिये बच्चों को नए तरीक़े से पढ़ाई से जोड़ा गया।

थिंकज़ोन फेलोशिप प्रोग्राम में युवाओं को अपने समुदाय के बच्चों को पढ़ाने की ट्रेनिंग दी गई। इस प्रोग्राम में पिछड़े इलाक़े के युवाओं को एजुकेशन लीडर बनाने का काम किया गया। इसके ज़रिये युवाओं ने कैंप लगाकर बच्चों को शिक्षा से जोड़ने का काम किया। थिंकज़ोन बच्चों को पढ़ाने वाले युवाओं को मानद स्वरूप कुछ रक़म और सर्टिफ़िकेट भी देता है।

मोबाइल एप की नई तकनीक

थिंकज़ोन के फेलोज़ बच्चों को भाषा और गणित के ज्ञान दे रहे हैं। इसके लिए थिंकज़ोन ने अपना मोबाइल एप विकसित किया है। इसके साथ ही ऐसी तकनीकों का इस्तेमाल कर प्रोग्राम की स्थिति, उसकी प्रगति पर भी नज़र रखी जाती है।

इसमें फ़ोन, मैसेज और चैटबोट के ज़रिए ऐसे इंटरएक्टिव प्रोग्राम तैयार किये जाते हैं जिसमें 3 से 10 साल तक के बच्चे बड़ी दिलचस्पी से हिस्सा लेते हैं और सीखते हैं। इसके साथ ही इन प्रोग्राम से बच्चों के माता-पिता को भी जोड़ा जाता है ताकि बच्चों का स्किल डेवलपमेंट तेज़ी से हो सके।

स्किल डेवलपमेंट में कामयाबी

थिंकज़ोन के ज़रिये विनायक ना केवल छोटे बच्चों की शिक्षा के स्तर में सुधार ला रहे हैं बल्कि युवाओं में स्किल डेवलपमेंट के कई प्रोग्राम भी चला रहे हैं। थिंकज़ोन से जुड़ कर 2143 युवाओं के टीचिंग स्किल्स में क़रीब 27% विकास हुआ। युवाओं में हुए इस बदलाव का असर 9671 बच्चों की शिक्षा पर पड़ा।

थिंकज़ोन का हुआ विस्तार

विनायक ने थिंकज़ोन की टीम को काफ़ी विस्तार दिया है। ओडिशा के अलावा बिहार और झारखंड समेत कई राज्यों में उनकी टीम काम कर रही है। शिक्षा और स्किल डेवलपमेंट के अलावा अब थिंकज़ोन स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी क़दम बढ़ा चुका है। विनायक और उनकी पूरी टीम को इंडिया स्टोरी प्रोजेक्ट की शुभकामनाएं। उम्मीद है उनका ये थिंकज़ोन भारत में व्यापक सामाजिक बदलाव में बड़ी भूमिका निभाएगा।