शिक्षक ना सिर्फ़ बच्चों को शिक्षा देते हैं बल्कि वो एक सभ्य और विकसित समाज का आधार होते हैं। राष्ट्रनिर्माण में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं। बच्चों को ना सिर्फ़ किताबी ज्ञान देते हैं बल्कि उन्हें समाज, संस्कृति और राष्ट्रप्रेम भी सिखाते हैं। ये पेशा केवल हर महीने आने वाली तनख़्वाह से ही नहीं जुड़ा है। शिक्षकों का जितना प्रेम शिक्षण से होता है उतना ही अपने बच्चों से भी होता है। इसलिए हज़ारों ऐसे शिक्षक भी हैं जिनके लिए ये केवल पेशा नहीं एक पैशन भी है। ऐसी ही एक शिक्षिका हैं वसुंधरा कुर्रे। आज इंडिया स्टोरी प्रोजेक्ट पर कहानी वसुंधरा कुर्रे की।
वसुंधरा को सम्मान
वसुंधरा कुर्रे सरकारी स्कूल की शिक्षिका हैं। वो छत्तीसगढ़ के कोरबा में शासकीय प्राथमिक शाला सरईसिंगार में पदस्थापित हैं। वसुंधरा पिछले 14 साल से इस स्कूल में पढ़ा रही हैं लेकिन ख़ास बात ये है कि वो बच्चों को सिर्फ़ पढ़ा नहीं रहीं बल्कि उनके अंदर सीखने की जिजिविषा पैदा कर रही हैं। बच्चों को अपनी मिट्टी से जोड़ रही हैं। नवाचार और शिक्षा का तालमेल कर वसुंधरा ने शिक्षण के काम को एक नया आयाम दिया है।
हाल ही में राजधानी रायपुर में आयोजित एक कार्यक्रम में प्रदेश के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने शिक्षा में नवाचार के लिए वसुंधरा कुर्रे को सम्मानित भी किया। इससे पहले भी वसुंधरा को कई राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर सम्मानों से अलंकृत किया जा चुका है।
शिक्षा में नवाचार का पाठ
वसुंधरा को जो बात आम शिक्षकों से अलग बनाती है वो है नवाचार। बचपन से ही शिक्षक बनने का सपना देखने वाली वसुंधरा को हमेशा ये लगता था कि क्लास कभी बच्चों के लिए बोरिंग नहीं होनी चाहिए। स्कूल में पढ़ाई ऐसी होनी चाहिए कि बच्चे भागे नहीं, बल्कि स्कूल आने और क्लास करने के लिए उत्साहित रहें। अपने बचपन की इसी सोच और सपने को साकार करने के लिए वसुंधरा शिक्षक बनीं। ख़ुद जांजगीर चांपा के सरकारी स्कूल में पढ़ कर आगे बढ़ने वाली वसुंधरा ने नवाचार को अपना हथियार बनाया और शिक्षा पद्धति में ऐसा बदलाव किया कि बच्चे ही नहीं उनके मां-बाप भी इसमें दिलचस्पी लेने लगे।
खेल-खिलौनों से शिक्षा
वसुंधरा को लगता था कि ऐसा क्या किया जाए जिससे पढ़ाई के प्रति बच्चों की दिलचस्पी हो, बच्चों का जुड़ाव हो। ऐसे में उन्हें सबसे अच्छा ज़रिया खिलौने लगे। वसुंधरा ने तय किया कि वो पढ़ाई में इन खिलौनों को शामिल करेंगी। उन्होंने खिलौने ख़रीदने के बजाय ख़ुद घर में बनाने का फ़ैसला किया। घर के पुराने कपड़ों से उन्होंने कई खिलौने और कार्टून कैरेक्टर बनाने शुरू कर दिये। डोरेमॉन, मिक्की माउस, छोटा भीम जैसे कार्टून कैरेक्टर बच्चों को ख़ूब पसंद आने लगे। उन्होंने कपड़ों की मदद से कई गुड़िया और कठपुतलियां भी बनाई। इन कठपुतलियों, गुड़ियां, खिलौनौं का इस्तेमाल कर वसुंधरा बच्चों को पाठ पढ़ाने लगीं। कठपुतली के माध्यम से वो बच्चों को ककहरा और अंग्रेजी के अल्फाबेट सिखाती हैं। इसी दौरान कठपुतली के ज़रिये ही बच्चों से सवाल पूछे जाते हैं और बच्चे उसका उत्साह के साथ जवाब देते हैं। बच्चे पूरी दिलचस्पी के साथ क्लास में शामिल होते हैं। इसके साथ ही वो सामान्य से पहले ही पाठ समझ और याद कर लेते हैं। वसुंधरा गणित के पाठ के लिए कई तरह के मॉडल बनाती हैं। जोड़-घटा हो या फ़िर गुणा-भाग, वो अलग-अलग मॉडल के ज़रिये बच्चों को समझाती हैं। ये पाया गया है कि इन मॉडल से पढ़ाई कराने पर बच्चे जल्दी समझते हैं। इसी तरह वो बच्चों को विज्ञान भी पढ़ाती हैं। वसुंधरा के इन मॉडल्स की चर्चा पूरे राज्य में हुई। इतना ही नहीं इस मॉडल को राज्य की शिक्षा नीति से जोड़ दिया गया है। उनके बनाये तीन खिलौनों का चयन पूरे प्रदेश में बच्चों को पढ़ाने में इस्तेमाल करने के लिये किया गया है।
यातायात के नियम सिखाने का अनूठा तरीका
ठीक इसी तरह वसुंधरा ने बच्चों को यातायात के नियम समझाने के लिए एक मॉडल तैयार किया। इसमें बच्चों को रेड लाइट, सड़क पार करने के तरीक़े, सड़क पर गाड़ी चलाने के नियम समेत कई तरह की बातें समझाई।
चित्रकारी से बच्चों को जोड़ा
वसुंधरा को ये बात पता थी कि बच्चों को जोड़ने के लिए स्कूल को बच्चों के मन के मुताबिक़ होना चाहिए। रंग बच्चों को बहुत पसंद होते हैं। छोटी उम्र से ही हर बच्चा रंगों के प्रति आकर्षित होता है। ऐसे में वसुंधरा ने अपने स्कूल की सादी दीवारों को रंगीन बना दिया। स्कूल की दीवारों पर अलग-अलग तरह की तस्वीरें बनाई गई। इसका भी बच्चों पर बहुत सकारात्मक असर पड़ा।
स्थानीय बोली में शिक्षा संवाद
वसुंधरा कुर्रे के नवाचार का एक पहलू स्थानीय बोली में शिक्षा संवाद भी है। वो बच्चों को छत्तीसगढ़ी बोली में कहानी सुनाती हैं। कई पाठ भी वो इसी बोली में पढ़ाती हैं। इससे बच्चे उनसे सीधा जुड़ाव महसूस करते हैं। उनकी अपनी बोली में ये कहानियां उन्हें और दिलचस्प लगती हैं। इसे रूम टू रीड कैंपेन का नाम दिया गया। ख़ास बात ये है कि शिक्षा विभाग उनके इस कैंपेन को अवॉर्ड भी दिया था।
सफल हुए वसुंधरा के नवाचार
वसुंधरा के शिक्षा को लेकर किये गये नवाचार बेहद सफल रहे हैं। उनके नवाचार ने बच्चों को शिक्षा से जोड़ने में अहम भूमिका निभाई है। स्कूल में बच्चों की उपस्थिति में जबरदस्त बढ़ोतरी हुई है। बच्चे खेल और खिलौनों की मदद से पढ़ने के लिए ख़ुद स्कूल आते हैं। उनके इन नवाचारों ने आदिवासी और पिछड़े इलाक़े में शिक्षा की एक नई लहर पैदा की है।
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