क्या हम इंसानों को पेड़ों की ज़रूरत नहीं है ? क्या धरती के सारे पेड़ काट कर वहां कल-कारखानें, कंक्रीट की इमारतें, हाई-वे, रेलवे ट्रैक जैसी चीज़ें बना देनी चाहिए ? अगर नहीं तो फ़िर हम पेड़ों की क़द्र क्यों नहीं करते ? क्यों अपने विकास के नाम पर उन पेड़ों की बलि देते हैं जो हमें जीने के लिए सांस दे रहे हैं ? क्यों उन पेड़ों को काट रहे हैं जिनसे ये धरती है, पानी है, हम हैं। आज इंडिया स्टोरी प्रोजेक्ट एक ऐसे योद्धा की कहानी लेकर आया है जिसने हर साल 1 करोड़ पौधारोपण का अभियान चलाया है। उसकी कोशिश है कि देश का हर आदमी हर साल कम से कम एक पेड़ लगाए ताकि ये धरा बची रहे।
राजीव का संकल्प
उनका नाम राजीव है। 33 साल के राजीव मूल रूप से बिहार के मुज़फ़्फ़रपुर के रहने वाले हैं लेकिन पिछले कई सालों से दिल्ली-NCR में काम कर रहे हैं। फ़िलहाल वो नोएडा में रहते हैं। पंजाब से IT डिप्लोमा की पढ़ाई कर चुके राजीव एक किसान परिवार से आते हैं। खेती-किसानी और मिट्टी से प्यार बचपन से ही है और इसी प्यार ने उन्हें अपनी धरती के लिए कुछ करने के लिए प्रेरित किया। वो शुरुआत से किसानों के लिए कुछ नया, कुछ बेहतर करना चाहते थे। इसी मक़सद से 2015 में उन्होंने ग्रामीण कृषि की शुरुआत की थी लेकिन उनका ये प्रयोग सफल नहीं रहा। इस बीच प्रदूषण और वृक्षों को लेकर सामने आ रही रिसर्च ने राजीव के मन में भूचाल पैदा कर दिया। प्रति व्यक्ति पेड़ का घटता अनुपात उनके दिल-ओ-दिमाग में ऐसा बैठा कि उन्होंने पौधारोपण का अभियान शुरू कर दिया।
1 साल, 1 इंसान, 1 पेड़
राजीव ने पहले तो स्थानीय पार्कों और सोसायटी की खाली जगहों पर पेड़ लगाने शुरू किये। धीरे-धीरे उन्हें अहसास हुआ कि इससे काम नहीं चलेगा। फ़िर उन्होंने लोगों को जागरूक करना शुरू किया। लोगों को पर्यावरण, वृक्षों के कटान और धरती के नुकसान के बारे में बताया और उन्हें अपने साथ पौधारोपण के लिए जोड़ना शुरू किया।
राजीव ने मिशन 100 करोड़ वृक्ष नाम से इस अभियान की शुरुआत कर दी। उनका मानना है कि ये लोगों की भागीदारी से ही संभव है। वो कहते हैं कि अगर एक इंसान हर साल में सिर्फ़ एक-एक पेड़ लगाए तो सारी मुश्किलों का हल निकल आएगा। राजीव ने अपने मिशन को चेन सिस्टम से जोड़ दिया। उन्होंने अपने साथ जुड़े लोगों से अपने परिचितों को जोड़ने की अपील की और फ़िर धीरे-धीरे ये अभियान एक आंदोलन बन गया।
ख़ुद के ख़र्च से शुरू किया पौधारोपण
राजीव इस मिशन में इतने जुड़ चुके थे कि उन्होंने ख़र्च की भी परवाह नहीं की। ख़ुद के ख़र्च से पौधे ख़रीदना, उन्हें लगाना, बाड़बंदी करना, समय-समय पर जाकर उनकी देखरेख करना, सबकुछ राजीव ने अपने दम पर शुरू किया। साल 2016 से 2019 तक हर महीने उन्होंने अपने इस अभियान में अपनी तनख़्वाह का क़रीब 30 प्रतिशत पौधारोपण के अभियान में ख़र्च कर दिये लेकिन जैसे-जैसे उनका ये संकल्प साकार होने लगा, लोगों का साथ मिलने लगा। अब लोग ख़ुद पौधे लाते हैं, उन्हें लगाते हैं। कई लोग ऐसे भी साथ आए हैं जो जन्मदिन, वर्षगांठ के मौक़े पर पौधे लगाने आते हैं। वो भी इस अभियान में अपना योगदान देते हैं। राजीव कहते हैं कि पौधारोपण के अभियान में पैसों की नहीं लोगों के जागरूक होने की ज़रूरत है। राजीव को इस अभियान में उनके परिवार का भी पूरा साथ मिल रहा है।
देश के कई राज्यों तक पहुंचा अभियान
राजीव ने जिस सोच के साथ पौधारोपण का अभियान शुरू किया था वो अब देश के कई राज्यों में फैल चुका है। अलग-अलग जगहों पर लोगों ने इसकी कमान संभाली हुई है और पौधे लगा रहे हैं। राजीव मानते हैं कि हर साल उनसे जुड़े लोग देश भर में करोड़ों पौधे लगा रहे हैं, उनमें से अगर 60-65 फ़ीसदी पौधे भी बच जाएं तो देश फ़िर से हरा-भरा हो जाएगा। दिल्ली के ग़ाज़ीपुर डंपिंग ग्राउंड, ITO छठ घाट, ग़ाज़ियाबाद के इंदिरापुरम, नोएडा में यमुना के किनारे उन्होंने बड़ी तादाद में पौधे लगाए हैं जो अब घने पेड़ बन चुके हैं।
यमुना की सफ़ाई
राजीव यमुना की सफ़ाई से जुड़ा अभियान भी चलाते हैं। अपनी टीम के साथ वो कई बार दिल्ली और नोएडा में यमुना के किनारे कचरे को इकट्ठा करते हैं। इसी के साथ वो इन इलाक़ों में पौधे भी लगा देते हैं। इस अभियान में उन्होंने कई युवाओं को अपने साथ जोड़ा है जो उनके साथ बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते हैं। राजीव ने अब तक ना तो कई संस्था बनाई है ना ही किसी NGO का गठन किया है। बस वो अपने मिशन 100 करोड़ वृक्ष के बैनर तले अपने अभियान को आगे बढ़ा रहे हैं।
राजीव का मिशन तेज़ी से आगे बढ़ रहा है। उम्मीद है कि वो जल्द ही 100 करोड़ वृक्ष के अपने लक्ष्य को पार कर लेंगे। उनका ये अभियान, उनका ये जज़्बा इस धरती को बचाने के लिए, हमें साफ़ हवा देने के लिए बहुत बड़ा योगदान है। इंडिया स्टोरी प्रोजेक्ट राजीव और उनके साथियों को सलाम करता है।
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