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धरती से

एक वॉटर वॉरियर की कहानी

आज इंडिया स्टोरी प्रोजेक्ट पर कहानी उस युवा शख़्स की जिसने एक प्राकृतिक आपदा के बाद अपना जीवन ना केवल अपने गांव बल्कि अपनी मिट्टी, अपनी हवा और अपने पानी के लिए समर्पित कर दिया। ये कहानी है उस युवा की जिसने अपनी विदेश की नौकरी छोड़ गांव में बसने का फ़ैसला किया और अपनी मेहनत से दुनिया भर में अपनी पहचान कायम की। उन्हें लोग वॉटर वॉरियर यानी जलयोद्धा के नाम से जानते हैं। ये कहानी है तमिलनाडु के निमल राघवन की।

दुबई की नौकरी छोड़ गांव में बसे

बीटेक की डिग्री के बाद निमल को दुबई में अच्छी ख़ासी तनख्वाह पर नौकरी मिली थी। वो वहां ख़ुश भी थे। काम भी अच्छा चल रहा था और अपनी सैलेरी से वो तमिलनाडु में तंजावुर के पेरावुरानी गांव में रहने वाले अपने परिवार की भी मदद कर पा रहे थे। पिता बीमार हुए तो निमल को घर की याद सताने लगी। वो चाहते थे कि भारत में ही रह कर काम करें। इसके लिए वो लगातार योजना बनाने लगे।

ये बात साल 2018 की है। निमल अपने परिवार से मिलने घर आए हुए थे। 18 नवंबर को बंगाल की खाड़ी में उठे तूफ़ान ने निमल की नई राह तय कर दी। 100 किलोमीटर प्रतिघंटे की रफ़्तार से उठे चक्रवाती तूफ़ान ने तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश के तटिय इलाक़ों को तहस-नहस कर दिया। हज़ारों घर तबाह हो गए। खेती पूरी तरह से बर्बाद हो गई। दोनों राज्यों से क़रीब 100 गांवों पर इस तूफ़ान का असर हुआ था। पूरा इलाक़ा नारियल की खेती में निर्भर था जो पूरी तरह से बर्बाद हो चुकी थी। नारियल के अधिकांश पेड़ों को तूफ़ान ने जड़ से उखाड़ दिया था। निमल के पिता की भी खेती नष्ट हो चुकी थी। तूफ़ान गुजरने के बाद पहले ने निमल अपने गांव के साथियों के साथ राहत और बचाव अभियान में जुट गए। उन्होंने बाउंसबैक डेल्टा के नाम से एक अभियान की शुरुआत की। इससे उन्होंने लोगों से फंड जुटाए जिससे तूफ़ान प्रभावित लोगों तक मदद पहुंचाई। लेकिन जल्द ही निमल को ये अहसास हुआ कि ज़रूरत सिर्फ़ तात्कालिक मदद की ही नहीं, एक व्यापक बदलाव की है। इसके बाद उन्होंने गांव में बसने का फ़ैसला कर लिया।

खेती में बदलाव पर काम

राहत और बचाव कार्य के दौरान निमल ने देखा कि इस इलाक़े के ज़्यादातर लोग केवल नारियल की खेती पर निर्भर रहते हैं। दूसरी फसलों की तरफ़ लोग ध्यान भी नहीं देते। निमल ने लोगों को नारियल के अलावा कई अच्छा मुनाफ़ा देने वाली फसलों की खेती की तरफ़ मोड़ने की कोशिश शुरू की। इसमें धान और गन्ने की फसल प्रमुख थी। धीरे-धीरे लोग निमल की बातों पर एतबार करने भी लगे। लेकिन अब उनके सामने एक नई समस्या खड़ी हो गई। ये थी इस इलाक़े में पानी की कमी। धान जैसी फसलों की खेती के लिए बड़े पैमाने पर पानी की आवश्यकता होती है लेकिन तमिलनाडु के तटिय इलाक़ों में इतने पानी की कमी थी। भूजल स्तर भी काफ़ी नीचे गिर चुका था। ऐसे में खेती के लिए धान और गन्ने की फसल लगाना बहुत बड़ा रिस्क था। लेकिन निमल ने तो ठान लिया था कि वो बदलाव ला कर रहेंगे।

तालाब-पोखर और झीलों को पुनर्जीवन

निमल ने तय किया कि वो इलाक़े के मृतप्राय हो चुके तालाब-पोखर और झीलों को ज़िंदा करेंगे लेकिन ये काम अकेले निमल के लिए मुमकिन नहीं था। उन्होंने इसके लिए अपने दोस्तों को अपने साथ जोड़ा। किसानों को साथ लाने के लिए किदईमदई एरिया इंटीग्रेटेड फार्मर्स एसोसिएशन का गठन किया। इस बैनर तले उन्होंने क़रीब 32 लाख रुपये जमा किये और पेरावुरानी की दम तोड़ रही पेरियाकुलम झील में नई जान फूंक दी। अपने 70 साथियों के साथ मिलकर निमल ने इस झील से सारी गाद निकाल दी। इस झील के पुनर्जीवीत होने से इलाक़े की 6000 एकड़ ज़मीन की सिंचाई की व्यवस्था हो गई। इतना ही नहीं, जो भूजल स्तर 300 से 400 फीट की गहराई तक पहुंच चुका था, वो बढ़ कर 40-50 फीट तक पहुंच गया। इसी झील के पुनर्जीवन ने निमल के हौसले को भी बुलंदी पर पहुंचा दिया। अब वो सिर्फ़ अपने ही नहीं बल्कि आसपास के गांवों के तालाब-पोखर और झीलों को नई जान देने में जुट गए।
साल 2019 से आज तक निमल ने तमिलनाडु के क़रीब 140 झीलों और तालाबों को पुनर्जीवित कर दिखाया है। उनका ये काम तंजावुर के अलावा थिरुवरूर, नागपट्टिनम, पुदुक्कोट्टई और शिवगंगई में तेज़ी से चल रहा है।

निमल का हरियाली अभियान

अब जल संरक्षण को लेकर निमल का अभियान रंग ला चुका था। इसके साथ ही उन्होंने हरियाली को लेकर भी काम करना शुरू कर दिया। अपनी संस्था कैफा के तहत वो अलग-अलग इलाक़ों में वृक्षारोपण करने लगे। उन्होंने कावेरी क्षेत्र में बाइक पर 700 किलोमीटर की यात्रा की और इस दौरान अपने साथ लाये सीड बॉल्स फेंकते गए। ये वृक्षारोपण का एक बड़ा अभियान था। फुटबॉल प्रेमी निमल ने वर्ल्ड कप में अर्जेंटीना की जीत पर 5000 पौधों का रोपण किया। ख़ास बात ये रहती है कि पौधारोपण में निमल स्थानीय प्रजातियों के पौधों को ही लगाते हैं।

निमल की नई पहचान

अब निमल वॉटर वॉरियर के रूप में जाने जाने लगे। संयुक्त राष्ट्र के पर्यावरण कार्यक्रम से जुड़े अधिकारियों ने निमल की सराहना की। देश के अलग-अलग राज्यों में वो जल संरक्षण और तालाबों-झीलों के पुनर्जीवन को लेकर स्पीच देते हैं। उन्होंने साल 2002 में श्रीलंका में आयोजित इंटरनेशनल वॉटर कॉन्फ्रेंस में भी हिस्सा लिया।

निमल के तालाबों और झीलों के पुनर्जीवन और पौधारोपण अभियानों ने 2600 गांवों की 4 लाख से ज़्यादा की आबादी को एक नया जीवन दिया है। निमल का काम जारी है। उम्मीद है उनके साथ देश के और भी लोग जुड़ेंगे और इस अभियान को एक क्रांति में बदल देंगे।