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बंदे में है दम

क्यों लौट के आया चंबल का डॉन?

एक वक़्त था जब चंबल का नाम सुनते ही रौंगटे खड़े हो जाते थे। अनेकों कहानियां, अनेकों किवदंतियां, अनेकों मिथक चंबल से जुड़े हुए हैं। एक से बढ़ कर एक ख़ूंखार डकैतों की दास्तां आज भी लोगों को रोमांच और दहशत से भर देती है। आज इंडिया स्टोरी प्रोजेक्ट एक ऐसे ही डाकू की कहानी लेकर आया है जिसे कभी चंबल का डॉन तो कभी चंबल का शेर कहा गया। ये कहानी है पूर्व डकैत रमेश सिंह सिकरवार की जो सालों बाद एक बार फ़िर चर्चा में हैं। आख़िर क्यों लौट के आया है चंबल का शेर

नए मिशन पर 72 साल के सिकरवार

मध्य प्रदेश के श्योपुर के रहने वाले रमेश सिंह सिकरवार एक बार फ़िर चर्चा में हैं। इस बार उनकी चर्चा की वजह कोई वारदात नहीं है बल्कि वो चर्चा में इसलिए हैं क्योंकि उन्हें सरकार ने एक ख़ास ज़िम्मेदारी दी है। ये ज़िम्मेदारी है चीतों की सुरक्षा करने की। रमेश सिकरवार को चीता मित्र बनाया गया है। दरअसल अफ़्रीका से भारत लाए जा रहे चीतों को श्योपुर के ही कूनो नेशनल पार्क में रखा जाएगा। ये इलाक़ा रमेश सिकरवार के घर के बिल्कुल पास है। प्रशासन ने चीतों को शिकार से बचाने के लिए स्थानीय लोगों को अपने साथ जोड़ा है। इसके लिए उन्होंने सिकरवार को चीता मित्र बनाया है। अब सिकरवार गांव-गांव घूम कर लोगों को शिकारियों के प्रति जागरूक कर रहे हैं। उन्होंने प्रशासन से अपील की है कि आसपास रहने वाले सभी शिकारियों की बंदूकें जब्त की जाएं। इतना ही नहीं उन्होंने ये भी चेतावनी दी है कि अगर किसी चीतों का शिकार करने की कोशिश की तो उसके हाथ काट दिये जाएंगे। सिकरवार गांव-गांव घूमकर लोगों को चीतों के प्रति भी जागरूक कर रहे हैं। यहां के लोगों को डर था कि चीतों के आने से उनपर ख़तरा बढ़ जाएगा। लेकिन वन विभाग के साथ मिलकर सिकरवार ने उन्हें समझाया कि चीते इंसानों से दूर रहते हैं।

आज भी इलाक़े में हनक

रमेश सिंह सिकरवार 80 के दशक के ख़ूंखार डकैतों में गिने जाते थे। ज़मीन विवाद को लेकर उन्होंने अपने चाचा की गोली मार कर हत्या कर दी थी और इसके बाद से वो डकैत बन गए थे। उन पर 250 से ज़्यादा डकैती और 70 से ज़्यादा हत्या के आरोप हैं। लेकिन इसके अलावा चंबल में उनकी पहचान एक रॉबिन हुड की तरह भी थी।

रमेश चंद्र ने साल 1984 में आत्मसमर्पण कर दिया था। 8 साल की क़ैद के बाद छूटे रमेश चंद्र ने समाज सेवा शुरू कर दी। आज भी इलाक़े में उनका दबदबा है। श्योपुर और मुरैना के 150 से ज़्यादा गांवों में आज भी उन्हें मुखिया कहा जाता है। उनकी बात सुनी और मानी जाती है। रमेश चंद्र सिकरवार के इसी प्रभाव का फ़ायदा श्योपुर प्रशासन चीतों की सुरक्षा के लिए कर रहा है। सिकरवार ख़ुद भी ये कहते हैं कि जब वो जंगल में रहा करते थे तब भी किसी को शिकार नहीं करने देते थे।

प्रधानमंत्री से भी मुलाक़ात संभव

17 सितंबर को ये चीते कूनो पहुंचेंगे। उस दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जन्मदिन है और वो ख़ुद इस ख़ास मौक़े पर मौजूद रहेंगे। कार्यक्रम के दौरान पीएम मोदी चीता मित्र रमेश चंद्र सिकरवार से भी मुलाक़ात करेंगे। सिकरवार इस नई ज़िम्मेदारी से बहुत उत्साहित और ख़ुश हैं। वो अपने इस नए काम को पूरी लगन के साथ पूरा करने के लिए प्रतिबद्ध नज़र आ रहे हैं। उन्हें तो बस इंतज़ार है उस पल का जब चीते कूनो की धरती को छुएंगे।