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बंदे में है दम

नक्सल क्षेत्र की नारी शक्ति

छत्तीसगढ़ के बस्तर से उठी बदलाव की लहर ना केवल इस सुदूर इलाक़े में विकास की एक नई किरण बिखेरी है बल्कि औरों को भी प्रेरित किया है। इंडिया स्टोरी प्रोजेक्ट आज मां दंतेश्वरी उत्पादन समिति की उन 43 जुझारू महिलाओं की कहानी लेकर आया है जिन्होंने बंजर में बहार ला दी है। बस्तर की इन महिलाओं ने दिखा दिया है कि अगर जज़्बा हो तो इंसान पत्थर से भी सोना निकाल सकता है। आज उनकी मेहनत का फल ना केवल बस्तर और छत्तीगढ़ बल्कि दिल्ली तक के लोगों का मुंह मीठा कर रहा है।

पथरीली ज़मीन पर खेती का संकल्प

बस्तर में तीरथगढ़ के पास बसा है मंगलपुर गांव। पथरीले इलाक़े वाला ये गांव विकास की दौड़ में पीछे रह गया। खेती लायक ज़मीन नहीं होने की वजह से गांव के लोगों को काम-धंधे के लिए बाहर जाना पड़ता था। किसी को आसपास काम मिल जाता तो किसी को दूसरे शहर का रुख़ करना पड़ता। पुरुष तो मज़दूरी करने चले जाते लेकिन इसी गांव की कुछ महिलाओं ने हिम्मत जुटा कर इस तस्वीर को बदलने की ठानी। उन्होंने पथरीली ज़मीन में खेती करने का फ़ैसला किया। जब इसकी ख़बर प्रशासन को मिली तो सकारात्मक सहयोग मिला। ज़िला प्रशासन के साथ-साथ किसान कल्याण संघ भी मदद के लिए आगे आ गया। ज़िला प्रशासन ने खाली पड़ी 10 एकड़ ज़मीन इन महिलाओं को खेती करने के लिए दे दी।

पत्थर पर उगाए पपीते

जानकारों से बात करने के बाद इन महिलाओं ने पपीते की खेती करने का फैसला किया। लेकिन इस पथरीली ज़मीन पर पपीता कैसे उगे, ये बड़ा सवाल था। तय किया गया कि ज़मीन से पत्थर हटाए जाएंगे। लेकिन इस पहाड़ जैसे काम के बारे में सुन कर ही गांव की कई महिलाओं ने काम करने से इनकार कर दिया। तब इन 43 महिलाओं ने एक-दूसरे का हाथ थामा और निकल पड़ी इस मुश्किल काम को अंजाम देने। 10 एकड़ की ज़मीन को इन महिलाओं ने अपने हाथों से साफ़ किया। एक-एक पथरी चुन कर निकाला। 10 एकड़ ज़मीन से इन महिलाओं ने 40 ट्रक पत्थर निकाल दिये। फ़िर प्रशासन की मदद से यहां उतनी ही लाल मिट्टी डाली गई। इन महिलाओं की मेहनत ने देखते ही देखते इस ज़मीन का काया-कल्प कर दिया। पथरीली ज़मीन अब खेती के लिए तैयार हो चुकी थी। इसके बाद बस्तर के किसान कल्याण संघ ने इन महिलाओं को अमीना नस्ल के पपीते के पौधे उपलब्ध करा दिये तो ज़िला प्रशासन ने खेती के लिए सिंचाई की व्यवस्था कर दी। इसके साथ ही 10 एकड़ की ज़मीन को तारों से घेर दिया।

नारी शक्ति की क्रांति से दुनिया दंग

ज़िला प्रशासन और किसान कल्याण संघ की मदद के साथ इन महिलाओं ने पपीते की खेती शुरू कर दी। 10 एकड़ ज़मीन पर क़रीब 5500 पौधे लगाए गए। समय-समय पर इसमें कृषि विशेषज्ञों की भी मदद ली गई। इस मेहनत का नतीजा बहुत शानदार हुआ। जब पौधों में पपीते लगे तो गांव में खुशी का माहौल बन गया और जब फसल तैयार हुई तो उत्सव। 10 एकड़ की खेती में 300 टन पपीते का उत्पादन हुआ। इस पपीते को ना केवल छत्तीसगढ़ के बाज़ार में बेचा गया बल्कि इसकी दिल्ली तक सप्लाई हुई। पहली बार में ही 40 लाख रुपये की कमाई हुई जो लागत से 10 लाख रुपये ज़्यादा थी।

पपीते के साथ दूसरी फसल

पपीते की फसल के साथ-साथ अब इस ज़मीन के और उपयोग पर भी काम शुरू कर दिया गया है। इन महिलाओं ने खेत में कई दूसरी सब्ज़ियां भी लगाई हैं। इससे बहुफसल पद्दधित से पपीते के साथ-साथ उन्हें कई तरह की सब्ज़ियां भी हासिल हो रही हैं जो उनकी आय को बढ़ा रही हैं।इन 43 महिलाओं के संघर्ष और विजय की कहानी की धूम छत्तीसगढ़ से लेकर दिल्ली तक है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल इन महिलाओं की तारीफ़ कर चुके हैं। अब ये महिलाओं दूसरों के लिए मिसाल बन गई हैं। ना केवल छत्तीसगढ़ बल्कि महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश से लोग आकर बस्तर की इस कृषि क्रांति को देख-समझ रहे हैं।