अक्सर हम एक ही ढर्रे पर चले जाते हैं। चाहे कामकाज़ हो या फ़िर ज़िंदगी, हम रेल की पटरी समझ उस पर चलते रहते हैं, कोई बदलाव, कोई मोड़ नहीं और कई बार ढर्रे पर चलते...
अक्सर हम एक ही ढर्रे पर चले जाते हैं। चाहे कामकाज़ हो या फ़िर ज़िंदगी, हम रेल की पटरी समझ उस पर चलते रहते हैं, कोई बदलाव, कोई मोड़ नहीं और कई बार ढर्रे पर चलते...