धरती बचाने का संकल्प लेकर एक युवा निकल पड़ा 25 सौ किलोमीटर से भी लंबी यात्रा पर। ये युवा 100-200 नहीं 1000 से ज़्यादा पौधों के बीज रोप कर लौटा है। उम्मीद है कि ये बीज एक दिन विशाल पेड़ में बदलेंगे और धरती बचाने की इस कोशिश को साकार करेंगे। आज इंडिया स्टोरी प्रोजेक्ट में इसी युवा की कहानी जिसका नाम है गौरव गंभीर।
नोएडा से पाकिस्तान की सीमा तक का सफ़र
नोएडा की एक कंपनी में ग्राफ़िक्स डिज़ाइनर का काम करने वाले गौरव पर्यावरण प्रहरी हैं। बीते 11 अगस्त को वो अपनी मोटरसाइकिल पर सवार होकर निकल पड़े एक ऐसे मिशन पर जो इस धरती को बचाने के लिए दमदार क़दम साबित हो सकता है। गौरव ने 8 दिनों में 2566 किलोमीटर की लंबी यात्रा की। इस दौरान वो राजस्थान के जयपुर, किशनगढ़, उदयपुर, कुंभलगढ़, जोधपुर, जैसलमेर, तनोट, लौंगेवाला, बीकानेर और मांडवा तक का सफ़र किया। गौरव अपने साथ हज़ारों सीड बॉल भी ले गए थे। सबसे पहले वो नोएडा से जयपुर पहुंचे। जयपुर से वो उदयपुर के लिए निकले। रास्ते में उन्हें जहां-जहां खाली जगह दिखी वहां वो इन सीड बॉल्स को डालते गए। इसी तरह उदयपुर से कुंभलगढ़ के रास्ते जोधपुर, जोधपुर से जैसलमेर, तनोट माता मंदिर होते हुए लौंगेवाला पहुंचे। यहां से वो बीकानेर और कोटपुतली गए। बीकानेर में सत्य साधना केंद्र और कोटपुतली के पास उदयपुर वाटी में भी उन्होंने पौधे लगाए। यहां से वो नोएडा लौट आए। पूरे रास्ते वो जगह-जगह रुककर अपने साथ लाए सीड बॉल डालते गए। बारिश के मौसम में सीड बॉल में डाले गए अलग-अलग पौधों के बीज ज़मीन पकड़ लेंगे और जल्द ही आकार ले लेंगे।
गौरव का पर्यावरण का प्रेम
गौरव शुरुआत से ही पर्यावरण के प्रति संजीदा रहे हैं। वो अक्सर समय निकालकर पौधारोपण और सफाई अभियान में हिस्सा लिया करते थे। उनका ये पर्यावरण प्रेम उन्हें मिशन 100 करोड़ पेड़ के राजीव जी के संपर्क में आए। इसके बाद वो अक्सर उनके साथ पौधारोपण अभियानों में शामिल होते रहे। सीड बॉल की यात्रा के लिए उन्हें राजीव के मिशन 100 करोड़ ट्री और थिंक गुड फाउंडेशन की तरफ़ से सीड बॉल उपलब्ध करवाए गए।
परिवार का मिला पूरा साथ
गौरव के इस अभियान में उनके परिवार ने भी उनका पूरा साथ दिया। मूल रूप से बिहार के छपरा के रहने वाले गौरव के पिता डॉक्टर हैं जबकि मां शिक्षिका। जब गौरव ने उन्हें अपनी इस ‘बीज यात्रा’ के बारे में बताया तो उन्होंने इसकी इजाज़त दे दी। हालांकि अकेले बाइक पर इतना लंबा सफ़र करने को लेकर उनके मन में आशंका तो थी, लेकिन गौरव शुरू से बाइकर रहे हैं। वो कई बाइक से कई बार एडवेंचर जर्नी कर चुके हैं इसलिए उनके घरवाले बहुत ज़्यादा चिंतित नहीं थे। गौरव को इसमें अपने ऑफ़िस के सीनियर्स और सहकर्मियों का भी साथ मिला। सबने गौरव का हौसला बढ़ाया।
इन सबके साथ और अपने हौसले के दम पर गौरव ने ये यात्रा पूरी की। वो चाहते हैं कि हर कोई पेड़ों का महत्व समझे और उसके संरक्षण और संवर्धन में अपना योगदान दें।
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