Home » जंगल के लिए जीवन समर्पित करने वाली जमुना
धरती से बंदे में है दम

जंगल के लिए जीवन समर्पित करने वाली जमुना

प्रधानमंत्री अपने मासिक कार्यक्रम मन की बात के माध्यम से हमेशा ही देश को कुछ ऐसे अनसंग वॉरियर्स से मिलवाते हैं जिनकी कहानियां लोगों को प्रेरणा दे जाती है। तो इंडिया स्टोरी प्रोजेक्ट में आज बात ऐसी ही एक अनसंग वॉरियर की जिन्हें प्रधानमंत्री ने लेडी टार्जन ऑफ इंडिया का ख़िताब दिया है। मिलिये जमुना टुडू से। 

जंगल के लिए माफिया से टक्कर

झारखंड और पश्चिम बंगाल की सीमा पर स्थित चाकुलिया में रहने वाली जमुना टुडू का जन्म ओडिशा के मयूरभंज में 19 दिसम्बर 1980 को हुआ। ओडिशा के जिस इलाके से वो आती हैं वहां पेड़-पौधों की तादाद बेहद कम थी और वो इसके चलते होने वाली परेशानियों से अवगत भी थी। ऐसे में जब वो 18 साल की उम्र में शादी कर जब चाकुलिया आयी तो उन्हें मालूम चला कि इस वन्यक्षेत्र में तो टिम्बर माफिया और नक्सलियों का राज चलता है। उन्होंने देखा कि कैसे हरे-भरे क्षेत्र को बंजर बनाया जा रहा है। ऐसे में जमुना टुडू ने 18 साल की उम्र में ही तय किया कि वो इस परिस्थिति को बदलकर ही दम लेगी। और इसी के साथ शुरुआत हुई एक ऐसी मुहीम की जो आज तक जारी है। जमुना टुडू को आज हम एक पर्यावरण कार्यकर्ता के तौर पर जानते हैं। बीते इतने सालों में उन्होंने न सिर्फ़ जंगल को बचाने का काम किया है बल्कि कई एकड़ जंगल को उगाये भी हैं। जमुना टुडू ने इस काम की शुरुआत भले ही अकेले अपने दम पर की हो लेकिन लोगों ने भी उनका ख़ूब साथ दिया।

पेड़-पौधों को बनाया परिवार

जमुना और उनके पति मज़दूरी कर जीवनयापन करते हैं। उनके अपने कोई बच्चे भी नहीं हैं। पति पत्नी ने पहले ही ये तय कर लिया था कि पेड़ पौधे ही उनके बच्चे हैं। अपनी आजीविका के लिए कार्य करने वाली जमुना ने ये तय किया कि वो आधे पहर ही काम करेंगी। बाकी आधा समय वो जंगल संरक्षण से जुड़े काम करेंगी। जमुना टुडू के जंगल बचाने की इस अभियान की शुरुआत साल 2000 में हुई थी। जंगल से लकड़ी काटकर लाने को परंपरा और जीवनयापन का ज़रिया बताकर जमुना का विरोध भी किया गया था। बावजूद इसके जंगल बचाने का प्रण ले चुकी जमुना अडिग रहीं। इसके बाद उन्होंने गांव की ही कुछ महिलाओं को एकत्रित किया और उन्हें जंगल बचाने के लिए प्रेरित करने लगी। जमुना महिलाओं को पेड़-पौधों के लाभ गिनाने लगी और इस तरह जंगल बचाने का अभियान शुरू हुआ।


जानलेवा हमले के बाद भी जारी है मिशन

जमुना घर का काम ख़त्म कर अपनी महिला साथियों को लेकर जंगल में जाती और वन माफियों को पेड़ों को काटने से रोकने लगीं। माफिया से लड़ने और गांव के आसपास के जंगल की रक्षा करने के लिए वे और उनकी महिला साथी तीर-धनुष, डंडे लेकर जंगलों में गश्त लगातीं। कई बार माफिया और नक्सलियों ने उन्हें अपने रास्ते से हटाने की कोशिशें भी की। लेकिन, उनके शुभचिंतकों ने उन्हें हर बार बचा लिया। एक बार तो जमुना पर बहुत घातक जानलेवा हमला हुआ। जमुना ने वन प्रबंधन रक्षा समिति का गठन किया है। पूरे राज्य में इस समिति से जुड़े हुए तीन सौ से अधिक महिला समूह सक्रिय हैं। ये समूह न सिर्फ़ टिम्बर माफियाओं को पेड़ों को काटने से रोकने का काम करते हैं बल्कि ये बंजर ज़मीन पर पेड़ लगाने और उनकी रक्षा करने का भी काम कर रहे हैं। 

काम को मिला सम्मान

बीते 20 साल में जमुना टुडू ने अपनी साथी महिलाओं के साथ मिलकर राज्य के तीन सौ गांव में 50 एकड़ से अधिक जंगल को बचा चुकी हैं। आज के वक्त में झारखंड सशस्त्र पुलिस उनके साथ मिलकर जंगलों में काम करती हैं। 

साल 2019 में पद्म श्री से सम्मानित हो चुकी जमुना टुडू को साल 2014 में नारी शक्ति पुरस्कार भी मिल चुका है। इतना ही नहीं साल 2016 में उन्हें राष्ट्रपति की ओर से भारत की प्रथम 100 महिलाओं में चुना गया और राष्ट्रपति भवन में उनका सम्मान हुआ। जमुना टुडू हर वर्ष पर्यावरण दिवस के मौके पर पेड़ों को राखी बांधती हैं और उन्हें सुरक्षित रखने का प्रण लेती हैं। 

जमुना टुडू ने जिस काम को अकेले अपने दम पर शुरु किया था वो काम आज एक मुहीम बन चुका है। आज कई लोग उनसे जुड़ रहे हैं। हम उम्मीद करते हैं उनका कारवां ऐसा ही बढ़ता जाएगा।