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बंदे में है दम

हादसे में खोये पैर और हाथ, UPSC पास कर बने मिसाल

अपनी कमजोरी को अपनी ताकत बना लेने का माद्दा ही एक इंसान को साधारण से खास बना जाता है। दिव्यांगजनों की अपने दम पर प्राप्त की गयी सफलता और उनकी सकारात्मक सोच पूरे समाज को प्रेरणा देने का कार्य करती है। तो आइये इंडिया स्टोरी प्रोजेक्ट में मिलते हैं यूपीएससी 2022 में 917 वीं रैंक हासिल करने वाले सूरज तिवारी से। सूरज तिवारी वहीं हैं जो साल 2014 में 12वीं की परीक्षा भी मुश्किल से पास कर पाये थे। 

हिम्मत नहीं हारने का नाम हैं सूरज
उत्तर प्रदेश के मैनपुरी जिले के रहने वाले सूरज तिवारी जब महज 26 साल के थे तब गाजियाबाद के दादरी में एक ट्रेन दुर्घटना में उन्होंने अपने दोनों पैरों के साथ अपना दाहिना हाथ और बायें हाथ की दो उंगलियों को खो दिया। साल 2017 की इस घटना ने के सूरज ही नहीं बल्कि पूरे परिवार को हिलाकर रख दिया। दरअसल इस हादसे से ठीक एक साल पहले सूरज के बड़े भाई राहुल की भी मृत्यु हो गयी थी। सूरज के पिता दर्जी और मां गृहिणी हैं। उनके परिवार में उनके अलावा उनके दो अन्य भाई-बहन भी हैं। सूरज उस वक्त जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, दिल्ली से बीएससी कर रहे थे। लेकिन, इस हादसे के बाद उन्हें अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़नी पड़ी। और, उनके जीवन में डिप्रेशन का दौर शुरू हुआ। इन मुश्किल भरे दौर से गुजरते हुए भी सूरज ने हिम्मत नहीं हारी और ना ही परिवार के लोगों को हारने दी। दुर्घटना के 6 महीने बीत जाने के बाद सूरज एक बार फिर दिल्ली लौटे और उन्होंने जेएनयू में बीए में दाखिला लिया। विज्ञान की पढ़ाई छोड़ उन्होंने भाषा की पढ़ाई करना तय किया। सूरज ने रूसी भाषा में बीए किया। इसके बाद साल 2020 में उन्होंने मास्टर में दाखिला लिया। कोविड के दौरान उन्होंने पूरा मन लगाकर पढ़ाई की और कुछ नया करने के बारे में तय किया। 

3 साल में मारी बाजी
साल 2020 में सूरज ने यूपीएससी की तैयारी की शुरुआत की। उनके इस फैसले में उनके परिवार वालों ने भी पूरा साथ दिया। सूरज ने पहले अटेम्प्ट में लिखित परीक्षा उत्तीर्ण की लेकिन, इंटरव्यू में वो कुछ अंकों से पीछे रह गये। इसके बाद साल 2022 में उन्होंने दूसरा अटेम्प्ट किया और इस बार वो 917 वीं रैंक पर चुने गए। सबसे बड़ी बात ये है कि सूरज ने UPSC की तैयारी के लिए कोई कोचिंग नहीं की।

हज़ारों-लाखों के लिए प्रेरणा हैं सूरज
सूरज दिव्यांगों के लिए ही नहीं बल्कि हर किसी के लिए एक प्रेरणा स्रोत हैं। सूरज कोई जन्मजात तो दिव्यांग नहीं थे। एक सामान्य स्वस्थ व्यक्ति की तरह जीवन जीते जीते जब वो हादसे का शिकार हुए तो ऐसे में जीवन को फिर से जीना शुरू करना आसान नहीं था। सूरज ने पहले अपने लिए जीवन शैली चुनी। फिर उसके साथ साथ उन्होंने पढ़ाई की। सूरज 15 या 16 घंटे पढ़ाई नहीं करते थे। बल्कि वो बस 4 घंटे या 5 घंटे एकाग्र मन से पढ़ाई करते थे। सूरज के सीनियर्स और जूनियर्स ने भी उनका पूरा साथ दिया। सूरज का कहना है कि उनके पास अभी जो कुछ भी है आर्थिक व शारीरिक उनके लिए वह काफी है और उसी के साथ वह सब कुछ कर सकते हैं जो चाहते हैं। सूरज आज उन सभी लोगों के लिए प्रेरणा बन चुके हैं जो जीवन में किसी दुर्घटना का शिकार हुए हैं और जिंदगी में कुछ करने की उम्मीद खोने लगे हैं।