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बंदे में है दम

कथक के साथ कैंसर से टक्कर

अंग्रेजी में एक कहावत है- ब्यूटी लाइज़ इन दी आइज़ ऑफ बी होल्डर। ये बात केवल कहने की नहीं है बल्कि ये बात महसूस करने की है और इस बात को किसी और से अधिक ख़ुद को महसूस करना ज़रूरी है ये समझाती हैं ये हमारी आज की नायिका। इंडिया स्टोरी प्रोजेक्ट में हम आपको आज मिलवा रहे हैं अलकनंदा दास गुप्ता से। पेशे से कथक नृत्यांगना अलकनंदा एक कैंसर वारियर हैं। उन्होंने न सिर्फ़ एक जानलेवा बीमारी को मात दी है, बल्कि उसके साथ ही बॉडी पॉजिटिविटी के लिए भी एक उदाहरण पेश किया है। 

बचपन से कथक से जुड़ाव
अलकनंदा दास गुप्ता को बचपन से ही कला और संस्कृति से जुड़ा हुआ माहौल मिला। अलकनंदा के माता पिता चाहते थे कि वे गायिका बने। संगीत के क्षेत्र में नाम कमाये। लेकिन, अलकनंदा का मन तो नृत्य में लगता था। अलकनंदा ने कथक को चुना। संस्कृति मंत्रालय की ओर से उन्हें नेशनल स्कॉलरशिप भी मिली। अलकनंदा ने बचपन से नृत्य को अपना साथी चुन लिया। 6 साल की उम्र में ही उन्होंने कथक सीखना शुरू कर दिया था। साल 14 साल तक वह कथक केंद्र में रही हैं। बिरजू महाराज से उन्होंने डांस सीखा और फिर उनके साथ काम भी किया। मशहूर कथक डांसर अलकनंदा दास गुप्ता अपनी बोलती आंखों के इशारों से ज़िंदगी बयां कर देती हैं। अलकनंदा के कथक के दीवाने लाखों हैं।  ये उनकी प्रतिभा ही थी कि महज 16 साल की उम्र में ही उन्होंने कथक सीखाना भी शुरू कर दिया। 

जब कैंसर से हुआ सामना
अलकनंदा का जीवन भी किसी फेरीटेल से कम नहीं चल रहा था। लेकिन, कैंसर उनके जीवन में एक मुश्किल मोड़ लेकर आया। अलकनंदा को यूट्रस में कैंसर था। अलकनंदा को पिछले साल अप्रैल में पता चला कि ओवरी में लंप है और उसकी वजह से ओवरी और यूट्रस को निकालना पड़ेगा। डॉक्टर ने तुरंत सर्जरी के लिए कहा लेकिन अलकनंदा ने उसे तीन हफ़्ते रोक दिया। वो बताती हैं कि उनका एक अहम प्रोग्राम था जिसे किये बिना वो ऑपरेशन नहीं करवा सकती थीं। अलकनंदा ने कहा कि वो डांस की हीलिंग पॉवर के दम पर इतना कर पायी। प्रोग्राम के बाद जब उन्होंने अपनी सेहत की ओर ध्यान दिया तो मालूम चला कि लंप टूट चुका है और शरीर में कैंसर ने घर कर लिया है। डॉक्टर ने जब कहा कि अभी ही एडमिट होना होगा तब भी अलकनंदा ने दो दिन का वक़्त मांगा और एक प्रस्तुति पूरी कर ही अस्पताल में भर्ती हुई। 

ऑपरेशन के बाद कथक से मिला आराम
अलकनंदा ऑपरेशन के बाद बेहद दर्द में रही। वे बताती हैं कि उनके पैर हिल भी नहीं पा रहे थे। ऐसे में अलकनंदा ने डॉक्टरों से जिद की कि वो कुछ ऐसा करें कि उनके पैर थिरक सकें। उस दर्द में भी अलकनंदा उन्होंने अपने पैरों से त.. थई.. नहीं कर लिया, तब तक उन्हें चैन नहीं आया। अलकनंदा उन दिनों को याद कर कहती हैं कि उन्होंने कैंसर को उसी तरह ट्रीट किया जैसे कोई नॉर्मल बीमारी हो। आगे वो कहती हैं कि आप जिसको तवज्जो देंगे वो चीज आपके लिये वर्क करेगी। मैंने कैंसर को तवज्जो नहीं दिया। डॉक्टर की ट्रीटमेंट, दवाओं को तवज्जो दी। मेरे दोस्तों ने भी मदद की। बोर्ड के एग्जाम की तरह टाइम टेबल फॉलो किया। अलकनंदा ने अपनी ज़िंदगी को मौक़ा दिया। 

कीमो के दौरान भी स्टेज शो
अलकनंदा बताती हैं कि सर्जरी के बाद उन्हें बताया गया कि अभी उनकी 6 कीमोथेरेपी होनी हैं। वह कहती हैं कि कीमोथेरेपी के दौरान जब पहली ही बार उनके बहुत सारे बाल झड़ना शुरू हुए तो उन्होंने तय किया कि वो अपना सिर मुंडवा लेंगी। दोनों बेटों से चर्चा के बाद उन्होंने अपना सिर मुंडवाया और बाल गंगा में बहा दिये। इस फैसले के बाद जीवन उनके लिए कुछ आसान हो गया। उनके मुताबिक मन की सुंदरता ही असल सुंदरता है। अलकनंदा बताती हैं कि कीमोथेरेपी का प्रोसेस बहुत दर्द भरा होता है. लेकिन जब भी वह कीमो के लिए पहुंचती थी तो वहां से सोशल मीडिया पर लाइव करती थी और मजे से हंसते-हंसते थेरेपी लेती थीं। वह बताती हैं कि तीसरी और छठी कीमो के बीच उन्होंने 15 स्टेज शो किए।

मन और नृत्य में है बग़ावत
वे उस समय भी नाचती थी और आज भी नाचती हैं। पार्टी डांस हो या परफॉर्मेंस, वो उस दर्द में भी नाचती थी। घर में काम करते हुए म्यूज़िक चला कर डांस करती थी। उन्होंने कभी डांस नहीं छोड़ा। अलकनंदा को नियमों को तोड़कर कुछ अलग करने की आदत है। वो एक सिंगल मदर हैं। अकेले ही दो बेटों को बड़ा कर रही हैं। उन्होंने नृत्य को करियर के तौर पर उस दौर में चुना जब इसका कोई भविष्य नहीं था। वो ख़ुद को एक रिबेल कहती हैं। एक ऐसी महिला जो आंदोलन करने में माहिर है। इंडिया स्टोरी प्रोजेक्ट की ओर से अलकनंदा को शुभकामनाएं और हम यहीं दुआ करेंगे कि वो ऐसे ही जीवन को अपनी शर्तों पर पूरे जोश और उत्साह के साथ जीती रहें।