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बंदे में है दम

छोटी सी उम्र, बड़ा हौसला

स्कूल में पढ़ रहा कोई बच्चा आख़िर क्या सोचेगा? यही कि आगे क्या सब्जेक्ट लेना है, कौन से कॉलेज में एडमिशन लेना है, कब कहां घूमने जाना है, क्या खाना है, कहां पार्टी करना है। लेकिन, जीवन के अपने कुछ अलग ही प्लान होते हैं। कभी-कभी कुछ ऐसे कि आपको लगे की जीवन ही ख़त्म। लेकिन, जीवन उम्मीद और हौसले के दम पर जिया जाता है। तो आज इंडिया स्टोरी प्रोजेक्ट में हम आपको मिलवाते हैं मध्य प्रदेश के छोटे और शांत शहर देवास की रहने वाली भाव्या से। 17 साल की भाव्या ने इस साल 12वीं की परीक्षा पास की है और वो आंखों की एक लाइलाज बीमार के साथ जी रही हैं। ना उससे लड़ रही है, ना जूझ रही है। हम ऐसा इसलिए लिख रहे हैं क्योंकि भाव्या ऐसे ही ख़ुद को ज़ाहिर करती हैं।

जब ज़िंदगी में सामने आई बीमारी
ये साल 2019 था। भाव्या बताती हैं कि जब वो 9वीं क्लास में ही थी तब से ही दिखायी देने में परेशानी आने लगी थी। लिखने, पढ़ने में भाव्या बहुत अच्छी और अव्वल आने वाली थी। लेकिन, अचानक से ही पढ़ने में जब दिक्कत आने लगी तो भाव्या और भाव्या के मम्मी-पापा को लगा कि चश्मा लगने वाला है। भाव्या की मम्मी ख़ुद एक शिक्षक हैं तो उन्हें इस बात का अहसास सामान्य माता-पिता के लिहाज से जल्दी हो गया। डॉक्टर ने चेक किया और चश्मा लग भी गया। लेकिन, ये चश्मा, चश्मा नहीं एक भ्रम था। ऑनलाइन क्लास के उस दौर में जब भाव्या दसवीं में आयी तो कम्प्यूटर पर लिखा कुछ भी दिखायी नहीं देता था। कितना भी पास चली जाये सब धुंधला। भाव्या बताती हैं कि इसके बाद 9 दिसम्बर 2020 का वो दिन आया जब देवास के डॉक्टरों को मर्ज़ समझ नहीं आया और उनके मम्मी-पापा उन्हें इंदौर लेकर गये। उस दिन मालूम चला कि चश्मे का नबंर कितना ही क्यों ना बढ़ा लो आंखों की परेशानी कम नहीं होगी बल्कि ये बढ़ती ही जाएगी। पूरे परिवार को एक शॉक की तरह मालूम चला कि भाव्या को स्टारगार्ड है। स्टारगार्ड, आंखों की एक ऐसी बीमारी जिसमें व्यक्ति की आंखों की रोशनी कम होती चली जाती है। सामान्यतः ये बीमारी जेनिटिक होती है यानी कि माता-पिता या परिवार के किसी व्यक्ति से बच्चों तक पहुंचती है।

बीमारी को Buddy बनाया
जब हमने भाव्या से पूछा कि आख़िर इस बीमारी में होता क्या है तो इस बच्ची ने बहुत ही आसान शब्दों में समझाया कि ऐसा लगता है कि आंखों के बीच किसी ने वैसलीन लगा दी है। इस बीमारी में सेंट्रल विजन चली जाती है। उसने बताया कि आंखों के लिए फ़ायदेमंद चीज़ें मेरे लिए नुकसानदायक है। अब तक इसका इलाज नहीं है। सेंटर नहीं दिखता। सामने वाले के चेहरे का नाक मुंह नहीं दिखता बाकी हिस्सा नज़र आता है। और, साथ ही में वो ये भी बोली कि मैं इस बीमारी के साथ लड़ नहीं रही हूं, जी रही हूं। वो इसे अपना Buddy बना चुकी हैं। ऐसा दोस्त जो हमेशा उनके साथ रहेगा। भाव्या और उनके माता-पिता ने इस मुश्किल से निपटने के लिए कई रास्ते खोजे। उनकी मम्मी ने देश ही नहीं दुनियाभर के डॉक्टरों से इस बाबत संपर्क साधा। इलाज के तरीकों की खोज के साथ-साथ उन्हें ये भी अहसास होने लगा कि इस बीमारी के बारे में लोगों को भी बताना ज़रूरी है। फिर माँ-बेटी ने तय किया कि वो लोगों को इसके बारे में बताएंगी, समझाएंगी। भाव्या बताती हैं कि लोगों को समझाना बहुत मुश्किल है। सबसे पहली और अहम बात तो ये कि चश्मा आंखों की सभी परेशानियों का इलाज नहीं। दूसरा ये कि ये बीमारी किसी चोट की वजह से नहीं होती है। भाव्या चश्मा पहनती ज़रुर है लेकिन आंखों की सुरक्षा के लिए। उनके इस अलग प्रकार के चश्मे का मज़ाक भी बनता है। लेकिन वो हर मज़ाक को मज़ाक में उड़ा देती हैं। कभी ना तो उसे दिल पर लेती हैं ना उससे निराश होती हैं। भाव्या कहती हैं कि उनके मम्मी-पापा, पूरा परिवार और दोस्त उन्हें कभी हताश नहीं होने देते हैं। वो ख़ास तौर पर अपने फर बडीज़ यानी तीन पेट्स को स्ट्रेस बसटर्स बताती हैं। उनका प्यार, उनका दुलार भाव्या को हमेशा नई ऊर्जा से सराबोर कर देता है।

ख़ुद के लिए नई राह चुनी
भाव्या स्त्रीरोग विशेषज्ञ बनाना चाहती थी। लेकिन, आंखों की इस स्थिति के साथ ये अब संभव नहीं। ऐसे में भाव्या ने विज्ञान को न चुनकर ह्यूमेनिटीज़ विषय को चुना और साथ में अपने बचपन के पैशन और प्यार कथक पर अपना ध्यान केन्द्रित किया। भाव्या पढ़ाई में बहुत अच्छी हैं। सुन्दर हैंडराइटिंग वाली भाव्या की लेखनी भी इस बीमारी के चलते ख़राब हो गयी। ऐसे में फिर उनकी मम्मी ने मोर्चा संभाला और भाव्या के लिए स्क्राइब खोजा। भाव्या बताती है कि स्क्राइब खोजना उनके लिए कितना संघर्षपूर्ण रहा। पहला जो मिला वो विषय से संबंधित नहीं था तो जो भाव्या बताती हैं कि ख़ुद से लिखना आसान होता है लेकिन स्क्राइब से लिखवाना आसान नहीं। वो ख़ुद एक पॉइन्ट लिखवाते-लिखवाते दूसरा पॉइन्ट भूल जाती थीं। शुरुआत में तो उन्हें उनके विषय का ही स्क्राइब मिला लेकिन 12वीं में उन्हें अपने विषय का स्क्राइब नहीं मिल सकता था।बहुत खोजबीन के बाद एक ऐसी स्क्राइब मिली जो आज उनकी अच्छी दोस्त बन चुकी है। दोनों ने परीक्षा की कई महीनों तक तैयारी की। भाव्या बोल-बोल कर लिखवाया करती थी और स्क्राइब लिखा करती थी। इसका नतीजा भी अच्छा आया। भाव्या को 12वीं में 91 प्रतिशत नबंर आये और वो अपने विषय में स्कूल में टॉप थ्री में एक रही।

यूट्यूब चैनल के माध्यम से अवेयर्नेस
भाव्या अपना एक यूट्यूब चैनल चलाती हैं। इस चैनल के माध्यम से वो न सिर्फ़ अपने डांस वीडियो शेयर करती हैं बल्कि वो स्टारगार्ड के बारे में जानकारी और इसके साथ जीने के नुस्खे भी बताती हैं। भाव्या का जब पहला टेस्ट हुआ था 40 प्रतिशत विजनलॉस हो चुका था। ऐसे में इसके साथ जीना और कुछ नया करना कइयों को प्रेरणा दे जाता है। भाव्या ने इंदौर से बंगलुरु तक अकेले हवाई सफ़र किया था और इस सफ़र का एक वीडियो ब्लॉग तैयार किया था। गोवा में अकेले दस घंटे एयरपोर्ट पर रुकना और लो विजन के साथ सफर करना सबकुछ इस वीडियो में था। लोगों ने सिर्फ इसे ख़ूब देखा बल्कि सराहना भी भरपूर की।

कोरियोग्राफर बनना चाहती हैं भाव्या
भाव्या ने अपने डांस को अपनी अभिव्यक्ति का माध्यम बना लिया है। वो अब इसी क्षेत्र में आगे बढ़ना चाहती हैं। वो एक कोरियोग्राफर बनाना चाहती हैं। भाव्या कहती हैं कि वो कथक में आगे की पढ़ाई करने के साथ-साथ तबला सीखना और बैले डांस सीखना भी चाहती हैं। भाव्या अभी से ही कोरियोग्राफी करने लगी हैं। साथ ही वो छोटे बच्चों को डांस भी सिखाती हैं।

भाव्या जीवटता की मिसाल है। एक छोटी सी बच्ची कैसे एक ऐसी गंभीर बीमारी के साथ जी रही है ये हमसबको भी अपनी परेशानियों से लड़ने की हिम्मत देता है। स्टारगार्ड ने भले ही आंखों की रोशनी कम की हो लेकिन भाव्या की चमक दिन-ब-दिन बढ़ती ही जा रही है। अपने माता-पिता की इकलौती संतान भाव्या आज उन्हें भी हिम्मत देती है कि सब ठीक होगा। इंडिया स्टोरी प्रोजेक्ट भाव्या को उनके उज्ज्वल भविष्य की शुभकामनाएं देता है।