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खेल की दुनिया बंदे में है दम

क्रिकेट के गुरु द्रोण गुरचरण सिंह

88 साल की उम्र लेकिन क्रिकेट से उनका प्यार कम नहीं हुआ। रोज़ सुबह 7 बजे वो अपनी क्रिकेट अकादमी पहुंच जाते हैं। पहले उन्होंने क्रिकेट खेल कर इस खेल को नये आयाम दिये, उसके बाद पिछले कई सालों से वो अपनी क्रिकेट अकादमी के ज़रिये नये खिलाड़ियों को तराश रहे हैं। आज इंडिया स्टोरी प्रोजेक्ट में कहानी क्रिकेट के गुरु द्रोण गुरचरण सिंह की।

पद्मश्री से सम्मानित गुरचरण सिंह
पूर्व क्रिकेट खिलाड़ी और क्रिकेट कोच गुरचरण सिंह को पद्मश्री से सम्मानित किया गया है। गुरचरण सिंह को मिले पद्मश्री के बारे में अगर ये कहा जाये कि देर आये लेकिन दुरुस्त आये तो ग़लत नहीं होगा। गुरचरण सिंह को क्रिकेट के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए ये पुरस्कार पहले ही मिल जाना चाहिए था। लेकिन, इस सम्मान को पाकर वो अभी भी बेहद ख़ुश हैं। वो कहते हैं कि क्रिकेट के लिए मिला कोई भी सम्मान उनके लिए बेहद ख़ास हैं। उनके क्रिकेट खेलना, क्रिकेट के बारे में सोचना eat cricket, sleep cricket and repeat cricket जैसा है। यही वजह है कि भारत को पहला विश्व कप जिताने वाले पूर्व क्रिकेटर कपिल देव भी आज उन्हें उतनी ही मोहब्बत से याद करते हैं जितना उस वक़्त करते थे जब गुरचरण सिंह टीम इंडिया के कोच थे। उन्हें साल 1987 में द्रोणाचार्य अवॉर्ड से भी नवाज़ा जा चुका है।

पाकिस्तान से पटियाला तक का सफर तय किया
गुरचरण सिंह का खेल के प्रति जुनून और प्रेम की शुरुआत हुई थी आज़ादी से पहले रावलपिंडी में, जहां उनका जन्म हुआ। वो आज भी उन दिनों को याद करते हैं। वो बताते हैं कि भारत की आज़ादी के समय बंटवारा हुआ तो वो उनके माता पिता के साथ रावलपिंडी से हिंदुस्तान चले आए। वो पटियाला के एक रिफ्यूजी कैंप में रहने लगे। पटियाला के महाराज ने ख़ास तौर पर पाकिस्तान से आये रिफ्यूजियों को सुविधाएं देने के लिए ये कैंप लगाया हुआ था। पटियाला में ही उनका पहली बार क्रिकेट से सामना हुआ। टीम के बारहवें खिलाड़ी से मुख्य बॉलर तक के सफ़र में पटियाला के महाराज और उनकी शाही टीम ने ख़ास भूमिका निभायी।

12वें खिलाड़ी से टीम इंडिया के कोच तक
रिफ्यूजी कैंप में रहते-रहते वो वहीं क्रिकेट ग्राउंड में आने-जाने लगे। वहां होने वाले मैच को देखने लगे। धीरे-धीरे ये खेल उनको भाने लगा। वो भी ग्राउंड में जाने लगे। कुछ दिनों में उन्हें भी खेलने का मौक़ा मिलने लगा। तब महाराजा यातविंद्र सिंह भी क्रिकेट खेलने आया करते थे। गुरचरण सिंह की बॉलिंग अच्छी होती थी। वो खेल के दौरान अक्सर महाराजा यादविंद्र सिंह को अक्सर आउट कर दिया करते थे। रणजी ट्रॉफी में भी उन्हें मौक़ा कुछ इसी वजह से मिला। हुआ कुछ यूं था कि रणजी के लिए पटियाला की टीम तैयार थी लेकिन अचानक एक खिलाड़ी कम हो गया। महाराजा यादविंद्र भी चिंता में पड़ गये कि 12 खिलाड़ियों के बिना टीम कैसे खेलेगी। तभी उन्हें सामने खड़े गुरचरण दिख गये। उन्होंने कहा कि गुरचरण का नाम दे देते हैं। इस तरह गुरचरण रणजी की टीम में शामिल हो गये।

गुरचरण के खेल को लगे पंख
इसके बाद गुरचरण जी ने कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा। पटियाला और पूर्वी पंजाब राज्य संघ, दक्षिणी पंजाब और रेलवे की टीमों का प्रतिनिधित्व किया और कोच बनने से पहले 37 फर्स्ट क्लास मैच खेले। इसमें उन्होंने गुरचरण सिंह ने एक शतक की मदद से 1198 रन बनाए थे. इसके अलावा 44 विकेट भी लिए थे। गुरचरण सिंह ने पटियाला के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ स्पोर्ट्स से कोचिंग डिप्लोमा लिया था और फिर नई दिल्ली में स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया के सेंटर में मुख्य कोच के रूप में शामिल हुए। वो 1977 से 1983 तक नॉर्थ जोन के कोच रहे। वहीं, 1985 में वो मालदीव की क्रिकेट टीम के हेड कोच रहे तो 1986 से 1987 के बीच वो भारतीय क्रिकेट टीम के भी कोच रहे थे। 1992-93 में वो लक्ष्मीबाई नेशनल कॉलेज ऑफ फिजिकल एजुकेशन और बीसीसीआई द्वारा संयुक्त रूप से ग्वालियर में शुरू की गई पेस बॉलिंग एकेडमी के डायरेक्टर भी रह चुके हैं।

क्रिकेट को दिये कई सितारे
गुरचरण सिंह ने कोच के तौर पर 100 से अधिक प्रथम श्रेणी के और 12 से अधिक अंतरराष्ट्रीय क्रिकेटरों को ट्रेन किया है। टीम इंडिया में खेलने वाले खिलाड़ियों में कीर्ति आज़ाद, सुरेंद्र खन्ना, सुनील वाल्सन, मनिन्दर सिंह, अजय जाडेजा, मुरली कार्तिक, विवेक राजदान, गगन खोड़ा और निखिल चोपड़ा समेत कई दिग्गज शामिल हैं।

क्रिकेट अकादमी में आज भी सक्रिय
88 साल की उम्र में भी उनका क्रिकेट से प्यार कम नहीं हुआ। वो थके नहीं हैं, वो रुके नहीं हैं। रोज़ वो अपनी क्रिकेट अकादमी जाकर बच्चों को क्रिकेट सिखाते हैं। सकारात्मक ऊर्जा और सकारात्मक सोच से भरपूर गुरचरण सिंह मानते हैं कि खेल के प्रति उनका प्रेम ही उन्हें आज तक प्रेरित कर रहा है आगे बढ़ने के लिए। पद्म पुरस्कार का मिलना वो इसी का प्रोत्साहन मानते हैं। वो कहते हैं कि हर व्यक्ति को अपने जीवन में एक लक्ष्य ज़रूर तय करना चाहिए। एक ऐसा लक्ष्य जिसकी प्राप्ति के लिए वो काम करें। यही जज़्बा आज भी गुरचरण सिंह को नई ऊर्जा से भर देता है।