फीफा महिला वर्ल्ड कप अंडर 17 का आग़ाज़ हो गया है। भारत इस प्रतियोगिता की मेजबानी कर रहा है। भारत की बेटियां इस प्रतियोगिता में दुनिया की शानदार टीमों से भिड़ंत ले रही हैं। आज इंडिया स्टोरी प्रोजेक्ट में कहानी भारतीय टीम में शामिल एक ऐसी योद्धा से जिसने तमाम मुश्किलों और परेशानियों से जंग जीत कर ना सिर्फ़ इस टीम में अपनी जगह बनाई बल्कि इस टीम का नेतृत्व भी कर रही हैं। इस यंग टाइग्रेस का नाम है अष्टम उरावं।
अष्टम के हाथ में कमान
अष्टम उरांव अंडर 17 फुटबॉल टीम की कैप्टन हैं। फीफा वर्ल्ड कप में अपने टीम के साथ मिलकर जीत का परचम लहराने की ज़िम्मेदारी अष्टम पर ही है। पूरा देश उनकी तरफ़ उम्मीद भरी निगाहों से देख रहा है। लेकिन अष्टम का ये सफ़र, ये उपलब्धि आसान नहीं थी। इस मक़ाम तक पहुंचने के लिए ना केवल अष्टम ने बल्कि उनके पूरे परिवार ने मुश्किलों का सामना किया। ऐसे-ऐसे हालातों से टक्कर ली जिसमें कोई भी आम इंसान टूट जाए बिखर जाए। लेकिन परिवार के साथ और अष्टम के हौसले की बदौलत आज वो भारतीय टीम की अगुवाई कर रही हैं।
बेहद ग़रीब है अष्टम का परिवार
झारखंड के गुमला में ज़िला मुख्यालय से क़रीब 57 किलोमीटर दूर बसा है गोर्रा टोली गांव। बिशुनपुर ब्लॉक में पड़ने वाला ये गांव ग़रीबी के सारे पैमाने तोड़ चुका है। इसी गांव में रहता है अष्टम उरांव का परिवार। ये परिवार दूसरे आदिवासी परिवार की ही तरह बेहद ग़रीब है। पिता हीरा और मां तारा दिहाड़ी मज़दूर हैं। ईंट-पत्थर ढो कर उन्होंने अपने चारों बच्चों की परवरिश की है। परिवार की ग़रीबी का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अष्टम के टीम इंडिया की कैप्टन बनने के बाद गांव में पहली बार सड़क बनवाई जा रही है और अष्टम के माता-पिता इसी सड़क निर्माण के काम में मज़दूरी कर रहे हैं। ख़ास बात ये है कि अष्टम के पिता हीरा भी इलाक़े के मशहूर फुटबॉलर थे लेकिन वो आगे नहीं बढ़ पाए और ग़रीबी ने उनके सपनों को तोड़ दिया। लेकिन अपने बच्चों के सपनों को उन्होंने मरने नहीं दिया। हमेशा उनका हौसला बढ़ाया।
माड़-भात और साग खाकर बच्चों ने पाई कामयाबी
बेहद ग़रीब आदिवासी परिवार के लिए रोज़ के खाने का भी संकट था। बच्चों को भात, दाल की जगह मांड़ और सब्ज़ी की जगह केवल साग खाने को मिलता था। यही खाकर उरांव परिवार के बच्चों ने संघर्ष की सीढ़ियां पार की। अष्टम तीन बहन और एक भाई है। अष्टम की बड़ी बहन सुमिना उरांव डिस्कस थ्रो में राष्ट्रीय स्तर की खिलाड़ी हैं। छोटी बहन इंदवार झारखंड की अंडर 16 फुटबॉल की प्लेयर है जबकि भाई अभी पढ़ाई कर रहा है।
गांव में पहली बार पहुंचा टीवी
अष्टम के कप्तान बनने के बाद गांव में पहली बार सड़क तो बन ही रही है, पहली बार गांव में टीवी भी पहुंचा। ज़िला प्रशासन ने अष्टम के घर में टीवी लगवाया है ताकि गांववाले वर्ल्ड कप के मैच देख सकें। टीवी पर अपनी बेटी को देश के लिए खेलते देख सकें। इससे पहले गांव में किसी के घर भी टीवी नहीं था। अष्टम और उनके परिवार की मेहनत और हौसले ने आज ना केवल अपने परिवार की बल्कि पूरे गांव की किस्मत बदल दी है।
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