अक्सर हम एक ही ढर्रे पर चले जाते हैं। चाहे कामकाज़ हो या फ़िर ज़िंदगी, हम रेल की पटरी समझ उस पर चलते रहते हैं, कोई बदलाव, कोई मोड़ नहीं और कई बार ढर्रे पर चलते चले जाना हमारे लिए नुक़सानदायक साबित होता है। कुछ ऐसा ही हो रहा था हमारी कहानी के नायक के साथ। लेकिन वो कुछ अलग मिजाज़ के शख़्स हैं। वो ढर्रे पर चलना नहीं ढर्रे को बदलना जानते हैं और उनके इसी जज़्बे ने उन्हें दुनिया से अलग बना दिया। आज इंडिया स्टोरी प्रोजेक्ट में कहानी महाराष्ट्र के किसान तुकाराम की।
प्रयोग से मिली पहचान
महाराष्ट्र के अहमदनगर के रहने वाले तुकाराम की पहचान एक प्रगतिशील और प्रयोगधर्मी किसान के तौर पर की जाती है। वो अपने खेत में बहुफसली पद्धति से खेती कर रहे हैं। यानी एक ही खेत में एक साथ कई तरह की फसलों की खेती। यही नहीं वो बड़े पैमाने पर गेंदे के फूल की खेती भी कर रहे हैं। खेती की इसी तकनीक ने तुकाराम और उनके परिवार की ज़िंदगी बदल दी। निमाज गांव के रहने वाले तुकाराम गुंजल और उनके भाइयों के पास कुल 12 एकड़ ज़मीन है। पहले वो भी अपने खेतों में पारंपरिक फसलें बोया करते थे। प्याज और गन्ना मुख्य रूप से उगाया जाता था। लेकिन सालों से की जा रही ये खेती परिवार के लिए शायद ही कभी फ़ायदेमंद साबित हुई। इन फसलों की खेती में मेहनत ज़्यादा थी और आमदनी कम। ऊपर से मज़दूरों पर भी काफ़ी रक़म ख़र्च करनी पड़ती थी।
इसी स्थिति को बदलने के लिए तुकाराम ने कुछ अलग करने की ठानी। भाइयों से विमर्श के बाद 2 एकड़ की ज़मीन पर सब्ज़ी उगानी शुरू की। तोरी और टमाटर के साथ शुरुआत की। उन्हें गेंदे की खेती का भी पता चला तो उन्होंने उसी ज़मीन पर बड़े पैमाने पर गेंदे भी लगा दिये।
केवल 2 एकड़ में शुरू हुई नई फसलों की खेती ने असर दिखाया। जिस सोच और उम्मीद के साथ तुकाराम ने इसकी शुरुआत की थी वो साकार होने लगी।
नई तकनीकों का इस्तेमाल
तुकाराम और उनके भाइयों ने ना केवल फसल बदली बल्कि खेती के लिए पुरानी तकनीकों को छोड़ नई तकनीकों का भी सहारा लिया। सिंचाई के लिए पानी का कम इस्तेमाल हो इसलिए ड्रिप तकनीक लगाई गई। सिंचाई के लिए खेत में एक तालाब और दो कुएं भी खोदे गए हैं। इससे सिंचाई के लिए पर्याप्त पानी मिल रहा है, इसके साथ ही तालाब की वजह से भूजल स्तर में भी सुधार हो रहा है। गोबर की खाद के साथ-साथ पॉल्ट्री फॉर्म के वेस्ट को भी खेतों में डाला गया। उन्होंने इस बात पर ज़्यादा ज़ोर दिया कि खेत में रासायनिक खाद और कीटनाशकों का प्रयोग कम से कम किया जाए। रात में फसलों को खाने वाले कीटों से बचाव के लिए उन्होंने सोलर ट्रैप लगाए हैं। सुबह होते ही ये ट्रैप बंद हो जाते हैं जिससे दिन में फसलों के लिए फ़ायदेमंद कीटों को ख़तरा नहीं होता। खर-पतवार से बचने के लिए मल्चिंग तकनीक का इस्तेमाल किया। इसमें खेत में पौधों की बेड को प्लास्टिक से ढंक दिया जाता है।
कई राज्यों में सप्लाई
तुकाराम और उनके भाइयों ने मिल कर अपनी खेती को नया स्वरूप दे दिया है। उनके खेत में उगे टमाटर मुंबई, पुणे समेत कई शहरों में जा रहे हैं। गुजरात के कई शहरों में तोरी की सप्लाई होती है। गेंदे के फूल भी गुजरात, महाराष्ट्र के साथ-साथ मध्य प्रदेश भी जा रहे हैं।
देशभर के किसानों के लिए मिसाल
तुकाराम की इस कृषि क्रांति की धमक पूरे हिंदुस्तान में है। महाराष्ट्र के अलावा, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, गुजरात और कर्नाटक से सैकड़ों किसान उनके गांव उनसे मिलने आते हैं। उनकी खेती देखते-समझते हैं। तुकाराम उनकी पूरी मदद करते हैं। उन्हें अपनी खेती के तरीक़े और जानकारियां मुहैया कराते हैं। ये तुकाराम और उनके भाइयों की हिम्मत और नई सोच के साथ चलने का जज़्बा ही है जिसने कभी घाटे का सौदा साबित हो रही खेती को फ़ायदे में बदल दिया।
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