हीरा चाहे जहां हो वो अपनी चमक वहीं बिखेरता है। ना केवल अपनी चमक बिखेरता है बल्कि दूसरों को भी उस चमक से रोशन कर देता है, रास्ता दिखाता है। कुछ ऐसी ही कहानी है बिहार की मीरा ठाकुर की जो अपने घर से हज़ारों किलोमीटर दूर बसने के बाद वहां भी ना केवल अपनी कला का जादू दिखा रही है बल्कि औरों को भी अपने साथ जोड़ रही हैं।
प्रवासियों को कला से जोड़ा
मीरा ठाकुर पिछले कई सालों से चंडीगढ़ में महिलाओं को मिथिला की सिक्की कला सिखा रही हैं। ख़ास तौर पर उनकी प्राथमिकता यूपी-बिहार से काम की तलाश में पंजाब आई प्रवासी महिलाएं होती हैं। मीरा इस कला को सिखाने के लिए उनके किसी तरह की कोई फीस नहीं लेती हैं। अब तक वो सैकड़ों महिलाओं का इस कला से साक्षात्कार करवा चुकी हैं। इस कला के ज़रिए महिलाएं ना केवल सीक की कलाकृतियां बना रही हैं बल्कि दूसरी कई सजावट की चीजें भी तैयार कर रही हैं। बाज़ार में इसे काफ़ी पसंद किया जाता है। इस कला ने उन्हें कमाई का भी एक ज़रिया दिया है।
विरासत में मिली कला
मीरा ठाकुर बिहार के मधुबनी ज़िले की रहने वाली है। सिक्की से कलाकृतियां बनाने की कला उन्हें विरासत में मिली। उनकी मां बुची देवी ने केवल चार साल की उम्र से मीरा को सिक्की आर्ट सिखाना शुरू कर दिया था। बहुत कम उम्र से सिक्की कला सीख रही मीरा कुछ ही दिनों में इसमें माहिर हो चुकी थीं। फूलदान, डलिया और बक्से बनाना उनके बायें हाथ का खेल हो गया था। 1988 में वो केवल 11 साल की थी जब पहली बार अपनी मां और घरवालों के साथ दिल्ली के प्रगति मैदान में लगी हस्तशिल्प और कला प्रदर्शनी में हिस्सा लिया। वहां मीरा के परिवार को ख़ूब तारीफ़ मिली। दिल्ली हस्तशिल्प परिषद ने उन्हें कमलादेवी पुरस्कार से सम्मानित किया। इस मान-सम्मान ने मीरा के मन में इस कला के प्रति प्यार को और बढ़ा दिया।
सिक्की मौनी कला ट्रेनिंग सेंटर
इंटरमीडिएट की पढ़ाई के बाद मीरा की शादी हो गई। उनके पति चंडीगढ़ में काम करते थे सो मीरा भी साल 1996 में उनके साथ-साथ चंडीगढ़ आ गईं। पति एक प्राइवेट कंपनी में काम करते थे। मीरा ने अपनी कला यात्रा को चंडीगढ़ आने के बाद भी जारी रखा। उनके पति ने भी इसमें उनका साथ दिया। वो यहां बिहार व उत्तरप्रदेश सहित अन्य राज्यों की महिलाओं को सिक्की मौनी कला का निशुल्क प्रशिक्षण देने लगीं। मीरा ने बहुत सी महिलाओं को इसके जरिये रोज़गार से जोड़ा। अपने इस काम को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने साल 2020 में चंडीगढ़ में सिक्की मौनी कला के लिए ट्रेनिंग सेंटर भी शुरू कर दिया। उनका ये अभियान, उनकी ये कला साधना धीरे-धीरे नए मुक़ाम पर पहुंच गई।
मिथिला की कई कलाओं में से एक सिक्की मौनी
बिहार का मधुबनी अपनी लोककलाओं के लिए दुनिया भर में प्रसिद्ध है। मिथिला पेंटिंग जिसे मधुबनी पेंटिंग भी कहा जाता है, विख्यात है लेकिन उसके अलावा सिक्की मौनी कला भी इस क्षेत्र की पहचान है। सिक्की एक पतली लंबी घास होती है जो अक्सर बिहार में सड़क किनारे उगी रहती है। इसे काट कर सुखाया जाता है। सूखने पर ये सुनहरी हो जाती है। इसलिए इसे गोल्डन ग्रास भी कहते हैं। सुखाने के बाद इससे तस्वीरें बनाई जाती हैं, इसे बीन कर अलग-अलग कलाकृतियां बनाई जाती हैं। डलिया, मउनी, चप्पल, खिलौने, चूड़ी जैसी कलाकृतियां सिक्की मौनी कला से तैयार होती हैं। सिक्की मौनी कला का जुड़ा मिथिला की संस्कृति से भी है। शादी-ब्याह में सिक्की मौनी की कलाकृतियां भेंट स्वरूप दी जाती रही हैं।
कला को मिला सम्मान
इस कला ने हमेशा मीरा को सम्मान दिलाया है। साल 1988 में बाल शिल्पी के रूप में कमलादेवी पुरस्कार से इसकी शुरुआत हुई थी। 2005 में वस्त्र और हस्तशिल्प मंत्रालय ने श्रेष्ठता पुरस्कार और यूनेस्को सील ऑफ़ एक्सीलेंस अवॉर्ड मिला। साल 2011 में चंडीगढ़ प्रशासन ने कला निधि पुरस्कार दिया, 2017 में हरियाणा सरकार ने सम्मानित किया। साल 2017 में बिहार सरकार ने मीरा ठाकुर को बिहार गौरव सम्मान से सम्मानित किया और इसी साल केंद्र सरकार ने उन्हें नारी शक्ति पुरस्कार से सम्मानित किया।
मीरा की ये कला साधना जारी है। अपनी कला साधना के ज़रिये ना केवल वो मिथिला की पारंपरिक कला को आगे बढ़ा रही हैं बल्कि दूसरों को भी इस कला से जोड़ रही हैं।
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