आज इंडिया स्टोरी प्रोजेक्ट पर हम एक ऐसे गांव की कहानी लेकर आए हैं जिसने अपने दम पर अपनी तक़दीर बदल डाली। ये कहानी है महाराष्ट्र के सोलापुर ज़िले के सुर्डी गांव की। ज़िला मुख्यालय से 51 किलोमीटर दूर बसे इस गांव ने बदहाली से ख़ुशहाली तक का ऐसा सफ़र तय किया जिसकी धूम दिल्ली तक सुनाई दी।
बिन पानी सब सून
इस गांव की बदहाली की वजह थी- पानी की कमी। पानी जिसके बिना सूना है। लंबे समय तक पानी के संकट से जूझते रहने के बाद गांववालों ने शुरुआत की जल संरक्षण अभियान की। इस ऐतिहासिक अभियान ने गांव के वर्तमान के साथ साथ भविष्य भी सुधार दिया। गांववालों ने इस अभियान के लिए किसी का मुंह नहीं ताका। ना तो सरकार का, ना ही किसी संस्था का। गांववालों ने पूरा मामला अपने हाथ में ले लिया।
सूखे से अभिशप्त विदर्भ
पानी का बरसना भले ही हमारे हाथ में नहीं। लेकिन बरसे हुए पानी को बचाये रखना तो है। इसी मूल-मंत्र के साथ गांव में शुरुआत हुई सूखे के ख़िलाफ़ अभियान और जल संरक्षण मुहीम की।
पश्चिमी महाराष्ट्र के सुर्डी गांव की आबादी 3,350 है। सुर्डी गांव भी विदर्भ की ही तरह सालभर इसी समस्या से जूझता रहता था। गर्मियों में हालात और ख़राब हो जाते थे। गांव के सारे जल स्रोत सूख जाते और लोग बूंद-बूंद पानी के लिए तरसते रहते। साल दर साल ये जलसंकट और भी ज़्यादा बढ़ता जा रहा था। ज़मीन के अंदर पानी का स्तर कम होने के कारण हर साल फरवरी के महीने में सभी जलस्रोत दम तोड़ देते थे। बारिश भी इतनी कम होती थी कि वो रेगिस्तान में एक बूंद जैसी होती थी। गांव के सारे तालाब और कुएं पूरी तरह से सूख जाते थे। खेत बंजर हो चुके थे। इस सूखे की वजह से गांव के लोग घर-बार छोड़ कर भागने लगे।
एकजुट हुए गांववाले
फ़िर आया साल 2010। एक ऐसा साल जिसने इस इलाक़े में बदलाव की एक नई दिशा दिखाई। 2010 में गांव के लोगों ने सूखे के इस हालात से निपटने का फ़ैसला किया। कुछ जानकारों की सलाह पर गांववालों ने वाटरशेड बनाने का निर्णय लिया। इसके लिए प्रशासन और सरकार की मदद का इंतज़ार किये बग़ैर गांव के लोगों ने 18,070 वर्गमीटर इलाक़े में वाटरशेड परियोजना को शुरू कर दिया। इस मुहीम में गांव की महिलाएं और बच्चे भी शामिल हो गए। क़रीब दस दिनों में सुर्डी गांव की सीमा के साथ 600 मीटर लंबी गहरे नालेनुमा खाई खोदी गई। इस खाई में बारिश के पानी को जमा करना था। इस कार्य के लिए शुरुआती पैसा समुदाय के लोगों ने ही लगाया। फिर ग्राम पंचायत ने राज्य के कृषि विभाग से संपर्क किया। कृषि विभाग ने गांव की मदद के लिए टेक्निकल सपोर्ट मुहैया कराया। गांववालों की मेहनत रंग लाई और अगली बारिश का पानी बर्बाद होने के बजाय उनकी खोदी गई खाई में भरने लगा। इससे ना केवल ग्राउंड वाटर रिचार्ज होने लगा बल्कि खाई से पानी तालाबों को भी भरने लगा।
लबालब भरे कुंए
जो गांववाले पहले बूंद-बूंद पानी के लिए मीलों का सफ़र करते थे, संघर्ष करते थे वहीं गांववाले अपने गांव के लबालब भरे हुए कुओं को देख अब फूले नहीं समाते। अब उन्हें पानी के लिए कहीं जाने की ज़रूरत भी नहीं पड़ती। अब गांववालों ने पहाड़ की चोटी पर भी पानी जमा करने के लिए छोटे-छोटे बेसिन और तालाब बना दिये हैं। पिछले डेढ़ साल में गांववालों ने कई जल संचयन परियोजनाओं पर काम करना शुरू किया है। इनमें फॉर्म पॉन्ड, चेक डेम समेत कई तरह के प्रोजेक्ट हैं।
टैंकर मुक्त गांव
कभी दूसरे इलाक़ों से होनेवाली पानी सप्लाई पर निर्भर इस गांव में आज इतना पानी है कि इसे टैंकर मुक्त गांव भी कहा जाता है। केंद्र सरकार ने भी उनके प्रयासों को मान्यता दी। केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय की ओर से आयोजित राष्ट्रीय जल पुरस्कार 2022 में सुर्डी ग्राम पंचायत ने “सर्वश्रेष्ठ ग्राम पंचायत” श्रेणी में तीसरा पुरस्कार जीता था।
तरक़्क़ी की राह पर गांव
पानी की कमी दूर होने के बाद इस गांव की सूरत ही बदल गई। पहले यहां बहुत मुश्किल ज्वार और बाजरा जैसी फसलें उगाई जाती थी लेकिन आज गांववालों ने नकदी फसलें जैसे गन्ना, अंगूर, पत्तेदार सब्जियां उगाना भी शुरू कर दिया है। अब इस गांव से फल और सब्जियां मुंबई और पुणे भी सप्लाई की जा रही हैं।
भविष्य की ओर देखता गांव
आज जब गांववाले जल संरक्षण में आत्मनिर्भर हो गए तब ग्राम पंचायत ने पानी के सही तरीक़े से इस्तेमाल और बचत को ज़रूरी कर दिया गया। गांव के खेतों में सिंचाई के लिए ड्रिप तकनीक के इस्तेमाल को ज़रूरी कर दिया। अब ये गांव पूरी तरह बदल चुका है।
इस गांव ने अपनी बदक़िस्मती पर रोने के बजाय अपनी क़िस्मत को बदल डाला। हम उम्मीद करते हैं सूर्डी गांव से प्रेरणा लेकर अन्य गांव भी इसी पथ पर आगे बढ़ेंगे और जल संरक्षण कर अपना कल संवारेंगे।
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