उनके काम को देखकर लोग हैरत में पड़ जाते हैं। उनकी हिम्मत, उनका हौसला और उनका आत्मविश्वास देख कर लोग दांतों तले उंगलियां दबा लेते हैं। अब तक लोगों ने पुरुषों को ये काम करते देखा है, लेकिन एक महिला का इतनी बहादुरी भरा काम वो पहली बार देख रहे हैं। आज इंडिया स्टोरी प्रोजेक्ट में कहानी उसी दमदार महिला की।
देश की पहली महिला स्नेक रेस्क्यूअर
वनिता देश की पहली महिला स्नेक रेस्क्यूअर हैं। 25 मई 1975 को जन्मी वनिता महाराष्ट्र के बुलढाणा में रहती हैं। उन्हें लोग सर्प मित्र के नाम से भी जानते हैं। ख़तरनाक से ख़तरनाक सांपों को वो ऐसे पकड़ती हैं जैसे कोई बच्चों का खेल हो। ज़हरीले सांप भी उनके हाथों में बेहद शांत नज़र आते हैं, मानों वो जानते हों कि उन्हें अब कोई ख़तरा नहीं है। वनिता अब तक 51 हज़ार से ज़्यादा सांपों का रेस्क्यू कर चुकी हैं। सांप निकलने पर उन्हें बुलढाना और आसपास के इलाक़ों के लोग बुलाते हैं। घर हो, खेत-खलिहान हो या फ़िर कुआं। जहां भी इंसानी आबादी के पास सांप निकलते हैं, वनिता वहां पहुंच जाती हैं। पूरे एहतियात के साथ सांप को बाहर निकालती हैं और फ़िर उन्हें सुरक्षित स्थानों पर छोड़ देती हैं। वो वन-विभाग से भी जुड़ी हैं। अपने रेस्क्यू किये गए सांपों की पूरी जानकारी वो वन-विभाग तक पहुंचाती हैं।
बचपन से हुई सांपों से दोस्ती
वनिता बचपन से ही गांव में रही हैं। गांव के आदिवासी बच्चों के साथ-साथ वो जंगल में जाना, पेड़ों पर चढ़ना, नदियों में तैरना अच्छे से सीख गई थीं। उन्हें रोमांच पसंद था। जंगली इलाक़ों में खेलना उनके रोमांच को और बढ़ा रहा था। धीरे-धीरे उनका ये रोमांच जंगल और जंगली जानवरों से उनके अटूट प्यार में बदल गया। वनीता बताती हैं कि बचपन में ही मछली पकड़ने के दौरान जाल में एक सांप फंस गया था। वैसे तो वो पानी वाला सांप था लेकिन तब वनीता को सांपों की पहचान नहीं थी। वनीता ने हिम्मत कर के उस सांप को हाथ में उठा लिया। सांप ने भी वनीता को नहीं काटा। इससे वनीता का हौसला बढ़ा और उनकी सांपों से दोस्ती के रिश्ते की शुरुआत हो गई। बहुत कम दिनों में वनीता सांपों को पहचानने लग गईं। कौन ज़हरीले हैं, कौन ख़तरनाक नहीं हैं, ये सब वनीता सांप को देखते ही जान जाती थीं। हालांकि जब घरवालों को इसके बारे में पता चला तो उन्होंने वनीता को डांट-फटकार कर रोकने की कोशिश की, लेकिन वनीता का सांपों से प्यार इतना बढ़ चुका था कि वो अब रूकने वाली नहीं थीं।
शादी के बाद भी जारी रहा काम
कहीं भी सांप निकलते तो वनीता वहां पहुंच जाती। मौक़ा मिलते ही सांप को पकड़ लेती और उन्हें जंगल में छोड़ आती। लोग वनीता को सांप पकड़ते देख हैरत में पड़ जाते। धीरे-धीरे वनीता को लोग जानने लगे। कहीं सांप निकलते तो लोग वनीता को बुलाने लगे। बहुत कम उम्र में वनीता की शादी हो गई। उनके पति धार्मिक प्रवचन करते हैं। शादी के बाद भी वनीता का काम जारी रहा। इस काम में उनके पति का भी समर्थन रहा।
सर्प मित्र वनिता को मिला मान और सम्मान
धीरे-धीरे गांव और आस-पास के इलाक़ों में वनीता को सम्मान दिया जाने लगा। लोग उन्हें बहुत आदरभाव से देखा करते थे। उन्होंने सोयरे वन्यचरे नाम की एक संस्था का भी गठन किया। इसके तहत वो अपने पति के साथ मिलकर आम लोगों को सांप और दूसरे जीव-जंतुओं के बारे में जागरूक करती हैं। वो बताती हैं कि सांप इंसानों के दुश्मन नहीं दोस्त होते हैं। वनिता बताती हैं कि देश ही नहीं दुनिया भर में सांपों के बारे में फैली भ्रांतियों की वजह से हज़ारों सांप मारे जाते हैं। वन्य जीवों के लिए किये इन्हीं कामों की वजह से कई निजी और सरकारी संस्थाओं ने वनिता को सम्मानित भी किया है, उनके कामों की प्रशंसा की है। संयुक्त राष्ट्र की संस्था WCPA ने उन्हें सांपों को संरक्षण के लिए सम्मानित किया है और उन्हें आजीवन सदस्य बनाया है। भारतीय डाक विभाग ने वनीता के नाम पर 5 रुपये का डाक टिकट भी जारी किया था और इसी साल 2022 में केंद्र सरकार ने उन्हें नारी शक्ति सम्मान से सम्मानित किया है।
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