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बंदे में है दम

वो मुश्किलों को हौसले से नाप रही है

हाई-वे पर दौड़ते ट्रकों को तो आपने देखा ही होगा। अक्सर सड़क किनारे ढाबों पर लगे ट्रक और वहीं खाना बनाते-आराम करते ट्रक ड्राइवर्स को भी ज़रूर देखा होगा। घर-परिवार से दूर, लगातार सैकड़ों-हज़ारों किलोमीटर का सफ़र, ना नहाने-धोने का सही ठिकाना ना और कोई सुविधा। यही वजह है कि ये तय हो गया कि ये काम सिर्फ़ पुरुषों का है। मानसिकता ये कि इतनी मुश्किल हालात में काम सिर्फ़ पुरुष ही कर सकते हैं लेकिन इसी पुरुषवादी सोच पर बुलंद प्रहार कर रही है एक नारी शक्ति। आज इंडिया स्टोरी प्रोजेक्ट में कहानी उसी नारी शक्ति की जिसका नाम है योगिता रघुवंशी। वो योगिता जो अपनी ज़िंदगी में आने वाली हर मुश्किलों को अपने हौसले से नाप रही हैं।

महिला ट्रक ड्राइवर योगिता

योगिता रघुवंशी, भारत ही नहीं एशिया की पहली महिला ट्रक ड्राइवर पार्वती आर्य की परंपरा को आगे बढ़ा रही हैं। पुरुषों के वर्चस्व वाले इस काम में योगिता एक नई शुरुआत बन चुकी हैं। पिछले 17 सालों से वो ट्रक चला रही हैं। देश का कोई भी कोना हो, मैदानी इलाक़ा हो या पहाड़, योगिता के हौसले के आगे ये लंबे रस्ते नतमस्तक हो चुके हैं।

वकालत से ट्रांसपोर्टर तक का सफ़र 

वैसे तो योगिता अब एक माहिर ट्रक ड्राइवर हैं लेकिन ऐसा नहीं है कि वो शुरुआत से ही ट्रक ड्राइवर बनना चाहती थीं। महाराष्ट्र के नंदुरबार में जन्मी योगिता ने बीकॉम तक की पढ़ाई की थी। इसके बाद उनकी शादी हो गई। पति भोपाल में बसे थे। वो एक वकील थे। साथ-साथ उनका ट्रांसपोर्ट का भी कारोबार था। 3 ट्रक चलते थे। सबकुछ ठीक चल रहा था। योगिता आगे और पढ़ाई करना चाहती थी। पति से सलाह लेकर उन्होंने लॉ की पढ़ाई की। इसी दौरान उनके घर में याशिका और यशविन का जन्म भी हुआ। घर में किसी बात की कमी नहीं थी। योगिता क़ानून की डिग्री हासिल कर कोर्ट जाने की तैयारी कर रही थीं तभी उनकी ज़िंदगी में एक भूचाल आ गया। साल 2003 की बात है। योगिता के पति का अचानक निधन हो गया। उस समय उनके बच्चे भी छोटे थे। पति के गुजरने का सदमा और घर चलाने की ज़िम्मेदारी पूरी तरह से योगिता पर आ गई। पहले तो योगिता ने कोशिश की कि वो कोर्ट और ट्रांसपोर्ट दोनों को संभाल पायें। लेकिन वकालत में उन्हें कामयाबी नहीं मिल पाई। उससे हो रही कमाई से घर चलाना संभव नहीं था। फ़िर उन्होंने अपना ध्यान ट्रांसपोर्ट की तरफ़ लगाया। उनके घरवालों ने भी इसमें उनका हौसला बढ़ाया लेकिन ट्रांसपोर्ट क्षेत्र में पुरुषों के वर्चस्व को लेकर कई लोगों ने उन्हें सचेत भी किया, सवाल भी उठाए। लेकिन योगिता रूकी नहीं। उन्होंने अपने ट्रांसपोर्ट के दफ़्तर में बैठना शुरू कर दिया और कुछ जानकारों से काम सीखना-समझना भी।

जब थाम लिया ट्रक का स्टेयरिंग 

योगिता की ट्रांसपोर्ट कंपनी के पास तीन ट्रक थे। जब भी कहीं माल सप्लाई का ऑर्डर मिलता, ट्रक ड्राइवर ट्रक लेकर चल पड़ते। योगिता सिर्फ़ ऑफ़िस का कामकाज संभाल रही थीं। लेकिन उन्हें महसूस हुआ कि इससे उन्हें उतना फ़ायदा नहीं हो पा रहा है। इसी बीच उनका एक ट्रक हैदराबाद में हादसे का शिकार हो गया और ड्राइवर ट्रक छोड़ कर भाग गया। योगिता हैदराबाद पहुंची और अपने ट्रक को ठीक करवा कर भोपाल पहुंची। इसके बाद उन्हें समझ में आया कि ट्रांसपोर्ट का काम करने के लिए उन्हें ख़ुद ट्रक चलाना सीखना ही पड़ेगा। इरादों की पक्की योगिता ने स्टेयरिंग थामने का फ़ैसला किया। ट्रक चलाने की पूरी ट्रेनिंग ली। हैवी वेह्किल्स का लाइसेंस बनवाया और फ़िर शुरू हो गया उनका हाई-वे का सफ़र।

 मुश्किलों को पार कर आगे बढ़ती गई योगिता

योगिता ने ट्रक चलाने की शुरुआत तो कर दी लेकिन ये इतना आसान भी नहीं था। शुरुआत में उन्होंने छोटी-छोटी दूरी तक सामान पहुंचाया। शुरुआती 5 साल बेहद संघर्ष वाले रहे। उन्हें कई तरह के ताने सुनने पड़े। एक बार तो कुछ ट्रक ड्राइवरों ने झड़प के दौरान योगिता पर हमला भी कर दिया। इसके बाद से योगिता को सुरक्षा के लिए अपना हुलिया बदलना पड़ा लेकिन वो रूकी नहीं। अब वो रातों को जागकर लंबी-लंबी दूरियां तय कर लेती हैं। बड़े से बड़ा कंसाइनमेंट बिना किसी परेशानी के पहुंचाती हैं।  

परिवार को भी दी शक्ति

योगिता ने इस मुश्किल काम को केवल अपने परिवार के लिए किया। दो बच्चों की परवरिश इसी काम के दम पर उन्होंने बहुत अच्छे तरीके से की। उनकी बेटी इंजीनियरिंग तो बेटा मैनेजमेंट की पढ़ाई कर रहे हैं।
योगिता नारीशक्ति की मिसाल हैं। उन्होंने समाज की वर्जनाओं को ध्वस्त किया है। ये दिखा दिया है कि काम चाहे कितना भी कठिन क्यों ना हो, महिलाएं चाह लें तो वो उसे अच्छे से कर के दिखा सकती हैं।

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  • क्षमा करें, ये देश की पहली महिला ट्रक ड्रायवर नहीं हैं। मध्‍य प्रदेश के मन्‍दसौर जिले की पार्वती आर्य देश की पहली महिला ड्रायवर हैं।